लॉकडाउन: कोरोना का नामोनिशान मिटाने के लिए आज से घर में करें ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 May, 2021 12:53 PM

importance of yajna

जब से कोरोना वायरस महामारी ने जन्म लिया है, तब से सारे संसार में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। लाखों की तादात में लोग इस दुनिया को अलविदा कह गए। अभी भी असंख्य लोग जिंदगी और

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जब से कोरोना वायरस महामारी ने जन्म लिया है, तब से सारे संसार में बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। लाखों की तादात में लोग इस दुनिया को अलविदा कह गए। अभी भी असंख्य लोग जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं। जो जीवित हैं, उनका लाइफस्टाइल बदल गया है। प्रकृति को साफ और स्वच्छ करने का जो काम सरकार लाखों-करोड़ों खर्च करके भी नहीं कर पाई, वे लॉकडाउन ने कर दिखाया। प्रकृति की खूबसूरती में अपना योगदान देने और धरती से कोरोना का नामोनिशान मिटाने के लिए आज से घर में करें यज्ञ।

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वास्तु विद्वानों के अनुसार जिस घर में यज्ञ-हवन जैसे काम होते रहते हैं, वहां मौजुद नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। कोई भी ऊपरी शक्ति अपना प्रभाव कायम करने में असमर्थ रहती है।  घर शुभ प्रभाव देता है। परिवार में रहने वाले लोगों की खुशी व सुख-समृद्धि सदा के लिए बनी रहती है।

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यज्ञ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसमें हवन, अग्निहोम भी आ जाता है। यज्ञ वैदिक समाज की देन है, वेदों का मुख्य विषय है तथा यज्ञ को अग्नि का संस्कार कहा गया है। यज्ञ की प्रक्रिया, इसके विविध स्वरूप आदि का निरुपण चारों वेदों (ऋग, यजु, साम, अथर्व) में मिलता है। ऋग्वेद तथा सामवेद में यज्ञ को देवताओं की प्रसन्नता का स्रोत कहा गया है, जहां अथर्ववेद यज्ञ में अनुशासन र्निदिष्ट करता है तो यजुर्वेद यज्ञ का मापन।

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वैदिक संहिताओं में यज्ञ को ही सृष्टि का मूल, समस्त भुवन का केंद्र कहा गया है तथा सम्पूर्ण विश्व को यज्ञमय बताया गया है। (अग्नि सामोत्मकं जगत:) मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले संस्कारों में यज्ञ की उपस्थिति किसी न किसी रूप में अवश्य रहती है। पद्म पुराणानुसार यज्ञ से ही दृष्टि होती है, दृष्टि से अन्नोत्पादन होता है और मनुष्य का पोषण होता है, अत: यज्ञ कल्याणकारी कर्म है।

उल्लेखनीय है कि यज्ञ से वातावरण की शुद्धि होती है, क्योंकि यज्ञाग्नि में पड़ने वाली सारी सामग्री प्रदूषण की अवरोधक होती है। यज्ञ का मुख्य उद्देश्य सामाजिक हित है। ज्ञातव्य है कि मनुष्य स्वयं अपने क्रिया-कलापों से प्रदूषण फैलाकर वायु, जल, परिवेश, पर्यावरण, प्रदूषित कर अपना जीवन संकटपूर्ण बनाता है, जबकि यज्ञ पर्यावरण के कायाकल्प तथा पुनरुद्धार का माध्यम है।

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पुरातन प्रज्ञावान, वैज्ञानिक ऋषियों ने भावी खतरों को भांप कर यज्ञ की परम्परा प्रचलित की तथा ज्यामितीय आकार पर निर्मित यज्ञ/ हवन कुंड में प्रज्ज्वलित अग्नि में औषधीय गुणों वाली सामग्रियों को मंत्रोच्चार सहित भस्म करने की अनिवार्यता बताई। पिरामिड की ज्यामितीय आकृति में निर्मित यज्ञ, हवन कुंड की अपनी महत्ता है, क्योंकि यह अग्नि की ऊर्जा को अंतरिक्ष तक प्रसारित करने का शक्तिशाली माध्यम बनता है।

यज्ञाग्नि में पड़ने वाली सारी सामग्री औषधीय गुणों वाले पदार्थों की होती है। इसमें निम्रांकित सामग्रियों का मिश्रण होता है, सुगंधित पदार्थों वाली सामग्री जैसे चंदन, इलायची, तुलसी, कस्तूरी, केयर, जावित्री, गुग्गुल, दशांग, कर्पूर, दालचीनी आदि। मीठी सामग्री जैसे मधु, शर्करा, गुड़, किशमिश आदि। शक्तिवर्धक सामग्री जैसे सूखे मेवे, छुआरा आदि। कृमिनाशक औषधियुक्त सामग्री जैसे गिलोय, जायफल आदि। यज्ञाग्नि में जलाने के लिए लकड़ी जिसे समिधा कहा जाता है उसमें आम, गूलर, नीम, बबूल, अशोक, अश्वत्व, चंदन, देवदार आदि की लकड़ी ही प्रयुक्त होती है। निश्चित रूप से जब उपर्युक्त सामग्री हवन कुंड की समिधा से प्रज्ज्वलित अग्नि में प्रयुक्त होती है तब उससे उत्पन्न ज्वाला, धूम्र, वायुमंडलीय वातावरण में पहुंचकर सम्पूर्ण परिवेश की परिशुद्धि करती है तथा जीवाणुओं को नष्ट करती है।

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यज्ञ की अग्नि से दो तत्व उत्पन्न होते हैं-धूम्र तथा वाष्प-इस तरह अग्नि में जलने वाली औषधीय सामग्री वायुमंडल में धूम्र तथा वाष्प के साथ तेजी से फैलती है। आकाश में पहुंचने वाला वाष्प, शुष्क घनीभूत कण, आपस में संयुक्त हो बादल का निर्माण करते हैं जो वृष्टि के रूप में धरती पर बरसते हैं तथा अन्न में भी पोषणीय तथा औषधीय गुण आ जाते हैं।

कुछ लोग ऐसा आरोपित करते हैं कि यज्ञाग्नि से निकलने वाली धूम्र (धुआं) तथा वाष्प के साथ कार्बन डायोक्साइड जैसी हानिकारक गैस उत्सर्जित होती है जो मनुष्य के लिए अहितकारी है। उल्लेखनीय है कि यज्ञाग्नि से कार्बन डाईआक्साइड गैस के साथ फार्मेलडेहाइड गैसें भी (औषधीय सामग्री के जलने से) उत्सर्जित होती हैं जो अपने अपरिवर्तित रूप एवं गुप के साथ वातावरण में प्रतिष्ठ होती है जो काफी अंश तक कार्बन डायोक्साइड गैस को अपने रूप गुण में ही परिवर्तित कर देती है।

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इस संबंध में 19वीं शताब्दी के नौवें दशक में अमरीकी वैज्ञानिकों लोए एवं फिशर ने वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह सिद्ध कर दिया था कि फार्मेलडेहाइड गैस एक अत्यंत शक्तिशाली, जीवाणुनाशी गैस है जो बैक्टीरिया का संहार करती है तथा कोमल, मृदु जैवीय उत्पादों को अपकर्ष से संरक्षित करती हैं।

उपर्युक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में यह स्वत: सिद्ध होता है कि यज्ञ कर्म न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण का निवारण करता है बल्कि यह लोक हितकारी भी है।  

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