Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Sep, 2020 09:26 AM
कर्मकांड शास्त्रानुसार मनुष्य तीन प्रकार के ऋण क्रमश: ‘देव ऋण’, ‘ऋषि ऋण’ एवं ‘पितृ ऋण’ उतारने का दायित्व जन्म-जन्मांतरों से करता चला आ रहा है। किंवदंती है कि इन कर्मकांडों को करने
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Shradh Paksha 2020: कर्मकांड शास्त्रानुसार मनुष्य तीन प्रकार के ऋण क्रमश: ‘देव ऋण’, ‘ऋषि ऋण’ एवं ‘पितृ ऋण’ उतारने का दायित्व जन्म-जन्मांतरों से करता चला आ रहा है। किंवदंती है कि इन कर्मकांडों को करने के लिए मगध क्षेत्र के ‘गया’ के जिले में प्रथम समागम भगवान ब्रह्मा के समय ही हो गया था। हिंदू शास्त्रों की मान्यतानुसार, श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान जैसे कर्मकांड वाले देश में ‘प्रयाग’, ‘काशी’ और ‘गया’ जैसी पवित्र त्रिस्थलियों में करने से पितरों को तृप्ति और संतुष्टि मिलती है। इनमें से ‘गया’ में किया गया श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान सर्वोत्तम माना गया है।
गया तीर्थ में अपने पूर्वजों के नाम पर जहां-जहां तीर्थ कर्म सम्पन्न किए जाते हैं उन्हें ‘वेदी’ कहा गया है। प्राच्य काल में इनकी संख्या 364-65 के करीब थी। जहां लोग एक-एक करके पूरे साल तक इस अनुष्ठान को तन-मन से सम्पन्न करते थे पर आज काल के गाल में समाहित होते जा रहे हैं। इन वेदियों के कारण अब इनकी संख्या 58 के करीब है जिनमें मंदिर रूप में ‘श्री विष्णुपद’, नदी रूप में ‘फल्गु जी’ और मोक्षतरू के रूप में ‘अक्षयवट, सर्वप्रमुख हैं और इन्हीं तीनों को ‘त्रिस्तंभ वेदी’ कहा गया है।
उनके अलावा अन्य वेदियों में गोदावरी, रामशिला, सीताकुंड, प्रेतशिला, गायत्रीघाट, उत्तर मानुस, गदालोल, भीमगया, धर्मारण्य, मातंगी, सरस्वती, सोलहवेदी, गयाइप, ब्रह्मगया, रामगया, आदिगया आदि का सुनाम है।
पिंडदान सामग्री में गौ दुग्ध, घृत व खोया के अलावा अखा चावल, जौ, गेहूं के आटे, काले तिलादि का प्रमुख स्थान है। पिंडदान में भैंस के दुग्ध या उससे बनी सामग्री का उपयोग वर्जित है। ‘गया’ को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है।
आज तक गया क्षेत्र में दाह-संस्कार, श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण आदि कर्मकांडों को करने की एक पौराणिक महत्ता के फलस्वरूप मनुष्य तो मनुष्य, स्वयं भगवान के मानवरूपी अवतारों- धर्मराज युधिष्ठिर, भीष्म पितामह, बलराम, श्रीकृष्ण एवं श्रीराम द्वारा भी इसी ‘गया’ में अपने-अपने पितरों का पिंडदान किया गया है।