Independence Day: कुल सपूत जान्यो परै, लखि शुभ लच्छन गात, होनहार बिरवान के, होत चीकने पात

Edited By Lata,Updated: 15 Aug, 2019 11:05 AM

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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक ईमानदार और सच्चे राष्ट्रभक्त थे। राष्ट्र से बढ़कर उनके सम्मुख और कुछ नहीं था।

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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक ईमानदार और सच्चे राष्ट्रभक्त थे। राष्ट्र से बढ़कर उनके सम्मुख और कुछ नहीं था। भारत की स्वाधीनता, देशवासियों का उद्धार ही उनका परम लक्ष्य था। उनके कुशल नेतृत्व में भारतीयों में आजादी की अभूतपूर्व जागृति पैदा हुई थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीय जागृति का अलख जगाने एवं ‘स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ का आह्वान करने वाले लोकमान्य तिलक सबसे प्रथम प्रणेता थे।
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तिलक का जन्म 1857 के स्वातंत्रय समय से एक वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक जिले के चिखलगांव में हुआ था। उस समय समूचे देश में जन आक्रोश एवं जन-क्रांति की जबरदस्त लहर फैली हुई थी। अत: बाल गंगाधर तिलक का बाल्यकाल ‘गदर’ की गोद में बीता। क्रांति का प्रभाव बालक तिलक पर बहुत गहरा पड़ा था। गदर की कहानियां उनके अंतर्मन में समा गई थी। यही कारण था कि 23 वर्ष की उम्र में ही युवक तिलक ने बी.ए. और एल.एल.बी. की परीक्षा पास की और उसके पश्चात वे देश की राजनीति में कूद पड़े। 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में ‘स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ का नारा बुलंद कर दिया। 26 वर्ष बाद यही नारा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के रूप में सामने आया और परिणामस्वरूप 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिकारी राष्ट्रवादी जितने नेता हुए उनमें तिलक का नाम अग्रणी है। वह एक असाधारण व्यक्त्वि के नेता और पक्के देशप्रेमी थे। उनकी बौद्धिक शक्ति अद्भुत तथा विलक्षण थी। चरित्र सत्यपूर्ण एवं पवित्र। वह जिस कार्य को करने का बीड़ा उठा लेते थे उसे पूरा करने में अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देते थे। उनके आदर्श भगवान श्रीकृष्ण तथा वीर शिवाजी थे। उनमें संगठन और नेतृत्व का महान गुण विद्यमान था।
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तिलक जनता की आकांक्षाओं-भावनाओं का बहुत आदर करते थे। वह जानते थे कि जब तक जनता के हृदय में अपनी मातृभूमि भारत माता, अपनी संस्कृति, राष्ट्र के लिए प्रेम उत्पन्न नहीं होगा, तब तक देश की मुक्ति के सारे प्रयास बेकार साबित होंगे इसीलिए इस उद्देश्य की पूर्ति को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ‘गणपति उत्सव’ और ‘शिवाजी उत्सव’ की नींव डाली, जिसमें उन्हें अखिल भारतीय सफलता भी मिली। आगे चलकर इन उत्सवों ने ही जन-साधारण में देश प्रेम की भावना भरकर उसे स्वतंत्रता आंदोलन के मार्ग पर अग्रसर-जागृत करने में अपूर्व योगदान प्रदान किया। ये त्यौहार न केवल महाराष्ट्र वरन आज तो सारे राष्ट्र के प्रिय त्यौहार हैं।

तिलक भारतीय संस्कृति, रहन-सहन, आचार-विचार और धर्म की प्रतिमूॢत थे। गीता, महाभारत, रामायण, पुराण व इतिहास के अतिरिक्त अंग्रेजी, संस्कृत और गणित जैसे विषयों के वह प्रकांड पंडित ज्ञाता थे। छठे शाठ्यम समाचरेत अर्थात ‘जैसे के साथ तैसे’ की नीति को उन्होंने व्यावहारिक ठहराया था।

लोकमान्य ने लोक जागरण के लिए ‘केसरी’ व ‘मराठा’ समाचार पत्रों को माध्यम बनाया। उनका यह दृढ़ मत था कि अंग्रेज सरकार की नीयत पर भरोसा करना, मुगालते में रहना इसलिए तिलक की नीति में धोखा खाने, झूठ पर विश्वास कर लेने की गुंजाइश नहीं थी। ‘साधनानाम्-अनेकता’ इस सिद्धांत पर विश्वास रखने वाले लोकमान्य आजादी देश की सुरक्षा के लिए सशस्त्र क्रांति के मार्ग को अग्राह्य नहीं मानते थे।

1896-97 का वर्ष महाराष्ट्र में अपने साथ अकाल और प्लेग लेकर आया। प्लेग तो नैसर्गिक आपत्ति थी जो भयंकर रूप में फैली हुई थी परन्तु प्लेग के ही दिनों मे रेड जैसे जुल्मी अधिकारी का पूना में आगमन दुर्भाग्य ही था। उसने अपने गोरे अंग्रेज सैनिकों की मदद से जनता पर मनमाने अत्याचार, जुल्म और ज्यादियां कीं। सारे पूना में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। तिलक ने इन अत्याचारों के विरुद्ध खूब लिखा। इसी बीच क्रांतिकारी वीर चाफेकर ने क्षुब्ध होकर  मिस्टर रेड को गोली से उड़ा दिया। इस हत्या का सूत्रधार तिलक को माना गया।
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चाफेकर को 18 मास के कारावास का दंड मिला। बस फिर क्या था जनता भड़क उठी। जगह-जगह आंदोलन होने लगे। तिलक ने क्रांति की मशाल थाम ली। सरकार ने उनकी लेखनी पर नियंत्रण रखने की सोची। नहीं लिखें इसके लिए शर्तें रखीं, किंतु फिर भी अनवरत रूप से निर्भीकतापूर्वक अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध तिलक लिखते ही रहे। खूब प्रहार करते रहे। ‘केसरों’ और ‘मराठों’ में उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी वस्तु-उपयोग, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा कर न देने के कार्यक्रमों आदि पर सदैव जमकर लिखा। इनके लेखों से प्रेरणा पाकर अनेक वीर देशभक्त क्रांतिकारी जाग्रति की मशाल हृदय में लेकर राष्ट्र भक्ति का नारा बुलंद कर आगे आए। उनमें वीर सावरकर का नाम गर्व से लिया जा सकता है।

यह कहना गलत न होगा कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जहां एक क्रांतिकारी, देशभक्त और महान राजनीतिज्ञ थे, वहीं उच्चकोटि के दार्शनिक एवं साहित्यकार भी थे। उनके द्वारा रचित ‘ओरायन (अग्रहायण) आर्कटिक होम इन दी वेदाज’ और ‘गीता रहस्य’ उनकी विलक्षण साहित्यिक प्रतिभा और गवेषणा-शक्ति के परिचायक हैं किंतु उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘गीता रहस्य’ है जिसे एक युग प्रवत्र्तक ग्रंथ की संज्ञा दी गई है।

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