Edited By Jyoti,Updated: 15 Aug, 2019 10:24 AM
भरा नहीं जो भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
महान कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की ये पंक्तियां देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर स्वदेश के प्रति प्रेम, त्याग एवं बलिदान की भावना उत्पन्न करती हैं।
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भरा नहीं जो भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
महान कवि मैथिलीशरण गुप्त जी की ये पंक्तियां देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर स्वदेश के प्रति प्रेम, त्याग एवं बलिदान की भावना उत्पन्न करती हैं। वह राष्ट्र कभी उन्नति नहीं कर सकता जिस राष्ट्र के नागरिकों में त्याग एवं बलिदान की भावना नहीं होती। रामायण में प्रसंग आता है कि जब रावण को मारने के पश्चात मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सामने लंका का राजा बनने का प्रस्ताव रखा जाता है तो वे कहते हैं कि:
अपि स्वर्णमयी लंका न च मे रोचते लक्ष्मण।
जननी स्वर्ग भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी॥
अर्थात जिस धरती पर हमने जन्म लिया है, उसका सुख स्वर्ग के सुख से भी बढ़कर है। हर नागरिक के अंदर अपने देश के प्रति त्याग एवं बलिदान की भावना होनी चाहिए, राष्ट्र कल्याण के हर कार्य को अपना कर्त्तव्य समझ कर करने की भावना होनी चाहिए तभी उस राष्ट्र का उत्कर्ष चहुं दिशाओं में फैलता है।
हमारे देश भारत वर्ष को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने में ऐसे ही त्यागी, बलिदानी, शूरवीरों तथा क्रांतिकारियों का योगदान है जिन्होंने अपना तन-मन-धन और सर्वस्व इस देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। अपने निजी सुखों को त्याग कर राष्ट्र हित के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया। ऐसे शूरवीरों, क्रांतिवीरों के कारण हमारा देश आजाद हुआ।
ऐसे ही क्रांतिकारियों में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। उनके नाम से अंग्रेज अधिकारी डर जाते थे। उनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा ग्राम में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। वह बचपन से ही वीर और साहसी थे। वे हमेशा सच बोलते थे।
एक बार वह साधु के वेश में घूम रहे थे तो पुलिस वालों ने उन्हें पकड़ लिया और उनसे पूछताछ की जाने लगी। पुलिस वालों ने उनसे पूछा कि क्या तुम आजाद हो? इस पर उन्होंने बड़ी चतुराई से सच बोला कि ‘‘अरे हम आजाद नहीं हैं तो क्या हैं? सभी साधु आजाद होते हैं। हम भी आजाद हैं।’’
इतना सच बोलकर भी वह पुलिस के चंगुल से निकल गए।
उन्होंने जीवन में एक ही सबक पढ़ा था कि गुलामी जिंदगी की सबसे बड़ी बदकिस्मती है। जब उन्होंने क्रांतिकारी जीवन में कदम रखा तो उनका साहस भरा कार्य काकोरी षड्यंत्र था। 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली गाड़ी को काकोरी के पास रोक कर अंग्रेजी खजाना लूटने के पश्चात नौ-दो ग्यारह हो गए थे। चाहे कई साथियों को बाद में पुलिस ने पकड़ कर फांसी की सजा दी थी पर आजाद आखिरी समय तक आजाद ही रहे। वह देश भक्ति के गीत बड़े चाव से सुना करते थे। चंद्रशेखर आजाद आजीवन अविवाहित रहे। वह कहा करते थे कि अपने सिर पर मौत का कफन बांध कर चलने वाला व्यक्ति कभी शादी के बंधन में बंधने की कल्पना भी नहीं कर सकता। आजाद ही नहीं उनके दल का हर एक सदस्य अपने घर बार को तिलांजलि देकर दल में शामिल हुआ था। जो व्यक्ति गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का स्वप्न लेकर आया हो वह वैवाहिक सुख की कल्पना भी कैसे कर सकता है। एक बार उनके दल के किसी सदस्य ने आजाद से पूछ लिया कि वह कैसी पत्नी की इच्छा करते हैं तो आजाद ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया, ‘‘मेरे लायक लड़की हिन्दुस्तान में तो क्या सारी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी क्योंकि मैं ऐसी पत्नी चाहता हूं जो एक कंधे पर राइफल और दूसरे कंधे पर कारतूसों से भरा हुआ बोरा उठा कर पहाड़ से पहाड़ घूमती रहे और इस तरह आजादी के लिए अपनी जान दे दे।’’
27 फरवरी 1931 को वह महान दिन था जिस दिन आजाद ने अपने जीवन से आजादी पाई थी। वह अक्सर कहा करते थे कि किसी मां ने अभी वह लाल पैदा ही नहीं किया जो आजाद को जीवित पकड़ सके। उन्होंने कसम खाई थी कि वह कभी पुलिस के हाथों जिंदा गिरफ्तार नहीं होंगे। इसी कसम को निभाते हुए वह शहीद हुए थे। प्रयाग के एल्फ्रेड पार्क में वह अपने साथी के साथ बैठकर कोई महत्वपूर्ण चर्चा कर रहे थे कि उनके एक साथी ने विश्वासघात करते हुए पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस ने चारों ओर से उन्हें घेर लिया। आजाद ने बड़ी वीरता से अंग्रेजों का सामना किया। दोनों ओर से गोलियों की बौछार होने लगी लेकिन आजाद कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने अपनी पिस्तौल से निशाना साधकर सी.आई.डी. के सुपरिंटैंडैंट की भुजा पर गोली मार कर उसे नकारा कर दिया। इसी प्रकार एक इंस्पैक्टर का जबाड़ा भी उड़ा दिया।
अचानक उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पिस्तौल में एक ही गोली बची है। वह अजीब संकट में फंस गए। उन्हें अपनी कसम बार-बार याद आने लगी कि जिंदा रहते हुए पुलिस के आदमी मुझे कभी हाथ नहीं लगाएंगे। उन्होंने अपनी कनपटी पर पिस्तौल की नाल लगा कर घोड़ा दबा दिया और आत्म बलिदान का गौरव प्राप्त किया।
उनके शव को देख कर भी पुलिस वालों को यकीन नहीं हो रहा था कि वे मर गए हैं। आजाद से भयभीत पुलिस वाले उनके शव को गोलियां मारते रहे। ऐसे निर्भीक और तेजस्वी थे अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद जिन्होंने मरते दम तक अपनी कसमों को निभाया और जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।