स्वतंत्र भारत और ‘कौमी एकता’

Edited By Jyoti,Updated: 15 Aug, 2020 01:13 PM

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स्वतंत्रता की वर्षगांठ मनाते हुए भारतीयता पर गर्व होता है, पर कुछ एेसी बातों पर भी ध्यान जाना स्वाभाविक है जो एकता और अखंडता के साथ साथ देश की प्रगति, सोच और व्यवहार से  जुड़ी हैं।

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स्वतंत्रता की वर्षगांठ मनाते हुए भारतीयता पर गर्व होता है, पर कुछ एेसी बातों पर भी ध्यान जाना स्वाभाविक है जो एकता और अखंडता के साथ साथ देश की प्रगति, सोच और व्यवहार से  जुड़ी हैं। इसके लिए उन स्थितियों का विश्लेषण करना आवश्यक है जो अक्सर  आगे बढऩे में हमारे रास्ते का रोड़ा बनती रही हैं। 
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ऐतिहासिक विरासत
सबसे पहले विभिन्न धर्मों विशेषकर हिन्दू मुस्लिम के बीच सद्भाव, सहयोग की चर्चा करते हैं। आजाद भारत में अगर कोई सबसे बड़ी समस्या रही है तो वह इन दोनों के संबंधों को लेकर ही है जो कभी तो इतने मधुर दिखाई देते हैं जैसे दो जिस्म और एक जान हों और कभी इतने कटु कि जैसे जन्म जन्मांतर की शत्रुता हो।

हिन्दू और मुस्लिम समाज के रिश्तों को समझने के लिए शुरूआत आजादी की पहली लड़ाई से करनी होगी जो सन 1857 में दोनों धर्मों के लोगों ने मिलकर लड़ी थी। यह वह वक्त था जिसमें तब तक ऐसा माहौल बन चुका था कि दोनों को एक-दूसरे से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता था। अंग्रेजी हुकूमत आने तक दोनों धर्मों के मानने वालों के लिए यह देश उनकी जन्मभूमि बन चुका था जिसे गंगा जमुनी तहजीब या धार्मिक रूप से अलग होते हुए भी एक होने की मिसाल कह सकते हैं।

जब यह सब था तो रिश्तों में खटास कहां से आई जो अब तक मुंह का जायका बिगाड़े हुए है। इसे समझने के लिए फिर इतिहास पर लौटते हैं। अंग्रेज एक चालाक कौम थी, उसकी समझ में आ गया था कि अगर ङ्क्षहदुस्तान पर राज करना है तो इन दोनों की एकता को तोड़कर ही किया जा सकता है। उसने जो बांटो और राज करो की चाल चली उसका जहर आज तक निकल नहीं सका है और जरा सी बात पर हिन्दू, मुस्लिम एक-दूसरे के खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं। 

जरा सोचिए कि तब का इतिहास एेसी घटनाआें से भरा पड़ा है जो बताती हैं कि कैसे हिन्दू हो या मुसलमान, अपने तीज त्यौहार, रीति-रिवाज, मंदिर-मस्जिद का निर्माण एक साथ मिलकर करते थे। मुस्लिम बादशाह हों या हिन्दू राजा, दोनों ही के दरबार में दोनों धर्मों के लोग होते थे। अंग्रेज के लिए हम केवल प्रजा थे, नागरिक नहीं और हिन्दू तथा मुसलमान भारत के नागरिक थे और भारतवासी हिन्दू या मुस्लिम शासकों की प्रजा थे।
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अपने मकसद को पूरा करने के लिए उसने पहले एक अंग्रेज से ही कांग्रेस की स्थापना कराई और जब यह देखा कि उसके अध्यक्ष और सदस्य  हिन्दू और मुसलमान दोनों ही बिना किसी धार्मिक भेदभाव के बन रहे हैं और मिलजुल कर काम कर रहे हैं तो उसने कांग्रेस को हिन्दू प्रभुत्व वाली संस्था घोषित कर दिया और सन 1906 में ढाका के नवाब ख्वाजा सलीमुल्लाह से अपने धर्म की रक्षा के नाम पर मुस्लिम लीग बनवा दी। यही नहीं सन 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन इसलिए कर दिया ताकि पूर्व में एक मुस्लिम बहुल प्रांत बन सके।

भारत और पाकिस्तान का बंटवारा चर्चिल की सोची समझी चाल थी जो उसने माऊंटबेटन के हाथों पूरी करवाई और इसमें  जिन्ना को राजदार बना लिया, वरना जो व्यक्ति कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की जंग लड़ता रहा हो वह अचानक कैसे  इतना जिद्दी हो सकता था कि मुसलमानों के लिए अलग मुल्क बनाने से कम कुछ भी सोचने से परहेज करने लगा।
महात्मा गांधी की दूरदर्शिता गांधी जी विभाजन का विरोध कर रहे थे क्योंकि उन्होंने भांप लिया था कि अगर बंटवारा हुआ तो आबादी की अदला-बदली में भयानक मारकाट होगी। उन्होंने स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री जिन्ना को बनाने तक का प्रस्ताव रखा।

अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति गांधी जी से अधिक कोई नहीं समझता था। उन्होंने यह देखकर कि दोनों कौम अलग-अलग होती जा रही हैं और इनके एक हुए बिना आजादी हासिल करना मुश्किल है तो उन्होंने अहिंसा, उपवास और सत्याग्रह का एेसा लड़ने का तरीका निकाला जिसकी काट अंग्रेज के पास नहीं थी।
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अब अंग्रेज कोई धार्मिक या आध्यात्मिक तो थे नहीं जो यह समझ पाते, वे तो केवल एक लड़ाके, कपटी व्यापारी, अन्यायी और शोषक थे जिनका मकसद केवल भारत को लूटना था। जब उन्होंने देखा कि हिन्दू मुसलमान को अलग नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने इन दोनों धर्मों के दलित वर्ग को एक अलग पहचान के रूप में खड़ा कर दिया।

आरक्षण, शिक्षा और रोजगार
आजादी के बाद हमारे नेताआें ने इन तीन वर्गों अर्थात हिन्दू, मुसलमान और दलित को एकसूत्र में पिरोने का काम करने के स्थान पर उन्हें अपने धर्म और जाति के आधार पर अलग-अलग रखने का काम किया। आरक्षण इसी का नतीजा है जो राजनीति, शिक्षा, नौकरी और प्रमोशन का आधार बन गया।

हम होंगे कामयाब के मंत्र के साथ उम्मीद है कि यह स्वतंत्रता दिवस देश के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा और हम स्वॢणम युग की शुरूआत कर सकेंगे जिसमें सभी धर्मों, जातियों और जनजातियों के लोग सबसे पहले देश की भावना से रह सकेंगे क्योंकि देश से बड़ा कुछ भी नहीं है।
 

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