Indira Ekadashi story: इस कथा को पढ़ने से पितरों को मिलेगी नरक से मुक्ति

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Sep, 2022 08:06 AM

indira ekadashi vrat katha in hindi

सत्ययुग में महिष्मती नगरी का राजा इन्द्र सैन हुआ जो बड़ा पराक्रमी एवं धार्मिक था। अपने राज कार्यों के साथ ही वह जप तप आदि धार्मिक क्रियाओं में भी लगा रहता था और हरि की उपासना जरुर करता था। एक दिन

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Indira Ekadashi vrat katha: सत्ययुग में महिष्मती नगरी का राजा इन्द्र सैन हुआ जो बड़ा पराक्रमी एवं धार्मिक था। अपने राज कार्यों के साथ ही वह जप तप आदि धार्मिक क्रियाओं में भी लगा रहता था और हरि की उपासना जरुर करता था। एक दिन आकाश मार्ग से देवर्षि नारद राजा के दरबार में आए और राजा ने अपने सिंहासन से उठकर नारद जी को प्रणाम करके उनके चरण धोए और आरती उतारकर उन का स्वागत किया। देवर्षि नारद ने भी राजा की कुशल मंगल पूछी और बताया, "मैं ब्रह्मलोक से यमलोक में गया था जहां यमराज ने मेरा खूब आदर सम्मान किया और मुझे ऊंचे आसन पर बिठाकर मेरी पूजा की। मैंने यमराज की सभा में आपके पुण्यात्मा पिता श्री का दर्शन किया।"

Indira Ekadashi: इस विधि से करें व्रत, पितृ होंगे प्रसन्न

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उन्होंने मुझे कहा, "महिष्मती नगरी का राजा इन्द्रसैन मेरा पुत्र है, जब आप उसे मिलोगे तो मेरा एक संदेश उसे जरुर दे देना। "

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आपके पिता श्री ने कहा कि ‘पिछले जन्मों के किए किसी पापकर्म के कारण मुझे यमलोक में रहना पड़ रहा है। राजा को कहना कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य फल मेरे निमित्त दे ताकि मेरा उद्घार हो सके और मैं यमलोक से स्वर्गलोक में जा सकूं’। 

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नारद जी ने कहा कि ‘ मैं भी चाहता हूं कि अपने पिता श्री को यमलोक से छुड़ाने के लिए आप यह व्रत जरुर करें।’ 

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नारद जी ने राजा को व्रत की सारी विधि बताई। राजा इन्द्रसैन ने नारद जी के उपदेश के अनुसार ही पूरे नियम से इंदिरा एकादशी व्रत का पालन किया तथा अगले दिन द्वादशी को भगवान विष्णू जी के महाप्रसाद के साथ पितर तर्पण तथा श्राद्घ किया और व्रत का फल अपने पिता श्री के नाम किया। व्रत के प्रभाव से आकाश से पुष्पवर्षा होने लगी तथा हरि वाहन गरुड़ जी राजा के पिता श्री को अपनी पीठ पर बिठाकर वैकुण्ठ में ले गए। राजा इन्द्र सैन ने लम्बे समय तक निष्कण्टक राज्य किया और अंत में अपना राज्य पुत्र को सौंपकर स्वयं ब्रह्मलोक में चले गए।

देवर्षि नारद कहते हैं ये व्रत इतना पुण्यकारी है कि इसके पुण्यफल के प्रभाव से पितरों का उद्घार हो जाता है तथा जीव के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन व्रत की कथा श्रवण करने, कीर्तन करने, सच्चे भाव से तुलसी और पीपल को जल चढ़ाने, मंदिर में दीपदान करने से सभी प्रकार के दैहिक, दैविक और भौतिक ताप मिट जाते हैं। 

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