इंडोनेशिया में भी बसता है भारत, देखें झलक

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 May, 2018 12:25 PM

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भारत की सैंकड़ों वर्षों की दासता ने हमारी संस्कृति-सभ्यता को लुप्त कर दिया था। इसी परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां हम क्या थे-क्या हो गए, क्या होंगे अभी ...गूंजने लगी थीं।

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PunjabKesariभारत की सैंकड़ों वर्षों की दासता ने हमारी संस्कृति-सभ्यता को लुप्त कर दिया था। इसी परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां हम क्या थे-क्या हो गए, क्या होंगे अभी ...गूंजने लगी थीं।


एक समय ऐसा भी था कि संसार में हमारी संस्कृति तथा सभ्यता की दुंदुभि बज रही थी। वर्तमान पीढ़ी, प्रगतिशीलता की आंधी में पीछे मुड़ कर देखना नहीं चाहती है। भारत में नित्य प्रयोग होने वाले पूजन अर्चन के प्रारंभ में विद्वान संस्कृत के श्लोक का वाचन करता है। ‘जम्बू द्वीपे भारत खंडे किंतु उसका पूर्णरूपेण अर्थ नहीं जानता है। इसी पर विदेशी इतिहासकारों तथा शिल्पकारों ने भारतीय विषयों पर अनेक बातों की विस्तृत व्याख्याएं लिखी हैं।’

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दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में वर्तमान रूप में भारतीय संस्कृति ने अहम भूमिका निभाई है। भारतीय प्रभाव के चिन्ह इंडोनेशियाई भाषा में बड़ी संख्या में संस्कृत शब्दों से प्राय: स्पष्ट है। बहुसंख्यक इंडोनेशियाई आज मुस्लिम हो सकते हैं, लेकिन उनके नाम अभी भी संस्कृतनिष्ठ हैं। इंडोनेशियाई भाषा में ‘स्वर्ग’ के लिए शब्द ‘स्वर्ग’ और नर्क के लिए शब्द ‘नरक’ है।

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इंडोनेशियाई, पहले हिंदुत्व और बौद्ध धर्म के मिश्रित प्रभाव में था, जो वहां उड़ीसा और दक्षिण भारत के व्यापारियों द्वारा पहुंचाया गया था। 16वीं सदी में भारत से गुजरात के व्यापारियों के द्वारा वहां जाने पर इस्लाम पहुंचा था। वास्तव में इंडोनेशिया में इस्लाम धर्म को पहुंचाने वाले भारतीय गुजराती व्यापारी ही थे। भारतीय राष्ट्रीय महाकाव्य ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने इंडोनेशिया की संस्कृति और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में भी इंडोनेशियाइयों के बीच भारतीय संस्कृति लोकप्रिय होने का प्रमाण यह है कि वहां की एयरलाइंस का नाम ‘गरुड़ एयरलाइन्स’ है। जावा के मुस्लिम, पूर्णिमा की रातों को रामायण नृत्य करते हैं। इंडोनेशिया मुस्लिम ‘नरमपंथी हैं’ जो सहनशीलता और सह अस्तित्व की बात करते हैं तथा कठोर एवं पुरातनपंथी इस्लाम से भिन्न हैं। इंडोनेशिया, गणेश उत्कीर्णत 20000 रुपिया की कागजी मुद्रा भी जारी करता है। इंडोनेशिया में सेना आ सूचना का शासकीय प्रतीक चिन्ह हनुमान है, जिसके पीछे यह तर्क है कि वह हनुमान ही थे, जिन्होंने सीता का पता लगाया था जिसे रावण ने अपहरण करके श्रीलंका में अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था।

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इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के दो प्रमुख स्थलों पर बलशाली पांडव भीम और अनेक घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर आरुढ़ श्री कृष्ण-अर्जुन द्वय की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इंडोनेशिया का राष्ट्रीय लक्ष्य (बोध वाक्य) ‘भिन्ने का तुंग्गल इका’ (एक अनेक, अनेक एक हैं) इंडोनेशियाई हस्तलिपि सुतासोमा काकविन हिंदी से प्रेरित है। वहां शिव और बुद्ध की समान मान्यता है।

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जब कोई बाली आता है तो हिंदू बहुसंख्यक (लगभग 4 मिलियंस) वाला इंडोनेशिया का एक प्रांत है, तो वहां की हिंदू पद्धति एक औसत भारतीय हिंदू को उलझन में डाल देगी।


भारत के ऋषिगण जैसे कि मार्कंडेय, भारद्वाज, अगस्त्य जिनका नाम भारत में अब प्रसिद्ध नहीं है, बाली के विद्यालयों में ये नाम सामान्य रूप से प्रचलित हैं। त्रिकाल संध्या (दिन में तीन बार सूर्य की पूजा) का प्रचलन बाली के प्रत्येक विद्यालय में है, गायत्री मंत्र दिन में तीन बार बाली के प्रत्येक विद्यालय के बच्चों द्वारा उच्चारित किया जाता है। अनेक स्थानीय रेडियो स्टेशन भी दिन में तीन बार त्रिकाल संध्या का प्रसारण करते हैं। क्या हम उस तरह की कोई चीज भारत में हमारे स्कूलों में शुरू करने के बारे में सोच भी सकते हैं?

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पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के लिए बाली वासियों की राष्ट्रीय पोशाक धोती है। कोई भी धोती पहने बिना मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता। बाली की सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था त्रि-हिंद-करन...हितकारी, लाभकारी सिद्धांतों पर आधारित है कि प्रत्येक मानव के तीन पहलू हैं ईश्वर के प्रति हमारा कर्तव्य संबंध (प्राह्यांगन) मानव के साथ हमारा संबंध (पावोनग) और प्रकृति के साथ हमारा संबंध (पालेमहान) और ये वही तीन सिद्धांत हैं जिन पर बाली की पूरी संस्कृति आधारित है।

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बाली द्वीप का प्रतीक चिन्ह देश की हिंदू परम्परा की अभिव्यक्ति है। इंडोनेशियाई पर्यटन मंत्रालय का एक प्रकाशन इस प्रतीक चिन्ह को इस प्रकार व्याख्यायित करता है, ‘त्रिभुज प्रतीक चिन्ह का आकार स्थायित्व और संतुलन का प्रतीक है। यह तीन सीधी रेखाओं से निर्मित है। जिसके दोनों सिरे मिलते हैं। जिससे प्रतीक जलती आग बन जाता है (ब्रह्मा, निर्माता), लिंग या फरल्लुस। यह त्रिभुज विश्व प्रकृति के तीन चरण और जीवन के तीन चरणों (जन्म, पालन और मृत्यु) का भी प्रतिनिधित्व करता है। पट्टी की पंक्ति, शक्ति, शक्ति भुवन अलित कद अगुग (स्वयं और दुनिया) में शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। यह धार्मिक और पवित्र अनुभूति का प्रतीक है, जो संतुलित गहरे परिवेश को जगाता है और सभी जीवित प्राणियों के बीच शांति बनाता है। बाली के धान के हर खेत में श्री देवी और भू देवी (लक्ष्मी, धन की देवी और मातृ देवी नामक दो देवियों, जो भारत में तिरुपति बालाजी के दोनों और खड़ी हैं) को समर्पित एक मंदिर होता है। कोई भी किसान श्री देवी और भू देवी की पहले पूजा किए बिना अपने कृषि कार्य की शुरूआत नहीं करता है। इसे ‘सबक प्रथा’ कहा जाता है।

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अंत में इसी संदर्भ में एक रोचक घटना की चर्चा से भारतीय संस्कृति की निकटता का स्पष्ट भान हो जाएगा। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की इंडोनेशिया यात्रा में वहां की राजधानी ‘जकार्ता’ में उनके सम्मान में रामायण पर एक नाटक दिखाया गया-नाटक के अंत में रामायण के पात्रों का परिचय करने पर सभी कलाकार मुस्लिम तथा विज्ञान और इंजीनियरिंग के छात्र थे। नेहरू जी उन सभी कलाकारों से चर्चा कर आश्चर्यचकित हो गए। यह भी एक विडम्बना ही है कि विश्व के कोने-कोने में भारतीय संस्कृति के सूत्र यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरे हुए मिलेंगे पर हम उनसे अनजान हैं।    

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