Edited By Jyoti,Updated: 04 Feb, 2021 08:21 PM
सुविख्यात संत श्री रविशंकर महाराज गुजरात के शहरों व गांवों में पहुंच कर लोगों को सामाजिक कुरीतियां त्यागकर सात्विक जीवन बिताने की प्रेरणा देते। वे अपने प्रवचनों में कहा करते थे
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सुविख्यात संत श्री रविशंकर महाराज गुजरात के शहरों व गांवों में पहुंच कर लोगों को सामाजिक कुरीतियां त्यागकर सात्विक जीवन बिताने की प्रेरणा देते। वे अपने प्रवचनों में कहा करते थे, ‘‘सात्विक जीवन बिताते हुए सेवा कार्यों में लगा रहने वाला व्यक्ति ही सच्चा धार्मिक होता है। दुव्र्यसनी कभी भी भगवान की कृपा नहीं प्राप्त कर सकता।’’
एक दिन एक जमींदार पटेल संत जी के पास आया तथा बोला, ‘‘महाराज, मैं कई बार प्रयत्न कर चुका हूं किन्तु शराब व अफीम की लत छूटती ही नहीं। लत छूटने का उपाय बताइए।’’
संत रविशंकर जी ने उसे अगले दिन आने को कहा। वह संत जी के पास दूसरे दिन पहुंचा तो देखा कि संत जी उस मकान के एक खम्भे को दोनों हाथों से पकड़े खड़े हैं। जमींदार ने यह दृश्य देखा तो कहा, ‘‘महाराज बैठिए न।’’
संत जी ने कहा, ‘‘यह खम्भा छोड़े तो बैठूं।’’
जमींदार ने ये शब्द सुने तो बोला, ‘‘महाराज यह जड़-बेजान खम्भा आपको कैसे जकड़ सकता है।’’
संत रविशंकर जी ने उत्तर दिया, ‘‘पटेल, जिस प्रकार शराब की लत आप जैसे युवक को जकड़े हुए है उसी तरह इस खम्भे ने मुझे अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है।’’
ये शब्द सुनते ही जमींदार की आंखें खुल गईं। उसने उसी समय जीवन में कभी भी शराब व अफीम को हाथ न लगाने का दृढ़ संकल्प ले लिया।