Edited By Jyoti,Updated: 09 Aug, 2022 11:25 AM
एक राजा कलाकारों का अत्यधिक सम्मान करता था। उसके दरबार में दूर-दूर से चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक और कवि आदि आते और अपनी रचनाओं पर भरपूर प्रशंसा व पुरस्कार पाते थे। एक दिन किसी दूरस्थ स्थान से एक प्रख्यात मूर्तिकार राजा के पास आया। उसने राजा को तीन
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एक राजा कलाकारों का अत्यधिक सम्मान करता था। उसके दरबार में दूर-दूर से चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक और कवि आदि आते और अपनी रचनाओं पर भरपूर प्रशंसा व पुरस्कार पाते थे। एक दिन किसी दूरस्थ स्थान से एक प्रख्यात मूर्तिकार राजा के पास आया। उसने राजा को तीन मूर्तियां भेंट कीं और बोला-राजन्! जब तक ये तीनों मूर्तियां आपके दरबार में रहेंगी, तब तक आपके राज्य में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। राजा ने प्रसन्न होकर मूर्तिकार को ईनाम में सोने के सिक्कों से भरा एक थैला दिया तथा अपने सेवकों को उन मूर्तियों का ध्यान से रख-रखाव करने का आदेश दिया। नौकर उन मूर्तियों की साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखते थे। एक दिन दुर्घटनावश सेवक के हाथ से सफाई करते वक्त एक मूर्ति गिरकर टूट गई। वह बहुत ही डर गया। जब राजा को यह बात पता चली तो वह अत्यधिक नाराज हुआ और उसने उस सेवक को मौत की सजा सुना दी।
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राजा का आदेश सुनते ही सेवक ने बाकी दो मूर्तियां भी नीचे पटककर तोड़ डालीं। जब राजा ने यह सुना तो राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उसे फटकारते हुए कहा, तूने ये मूर्तियां क्यों तोड़ीं। उस सेवक ने कहा-राजन्! कभी तो किसी न किसी के हाथ से तो ये मूर्तियां टूटनी ही थीं। आप फिर उन्हें भी मौत की सजा ही देते और बेवजह दो व्यक्ति मारे जाते इसलिए मैंने दोनों बची मूर्तियां फोड़कर दो अन्य व्यक्तियों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया है। सेवक की बात सुनकर राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसे क्षमा कर दिया। सच है कि दूसरों का हित चिंतन करने वाले का भगवान भी भला करते हैं, अत: सदैव स्वयं से पहले दूसरों का ध्यान रखें।