एक और एक ग्यारह: थोड़ी सूझबूझ लगाएं और अपने शत्रुओं को करें परास्त

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Sep, 2020 05:55 AM

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एक बार की बात है कि बनगिरी के घने जंगल में एक हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था। बनगिरी में ही एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिड़े का

 
Inspirational story: एक बार की बात है कि बनगिरी के घने जंगल में एक हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था। बनगिरी में ही एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिड़े का छोटा-सा सुखी संसार था। चिड़िया अंडों पर बैठी नन्हे-नन्हे प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाड़ता, पेड़ों को तोड़ता-मरोड़ता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिड़िया के घोंसले वाला पेड़ भी तोड़ डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पड़ा।
 
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चिड़िया और चिड़ा चीखने-चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिड़िया छाती पीट-पीटकर रोने लगी, तभी वहां कठफोड़वी आई। वह चिड़िया की अच्छी मित्र थी। कठफोड़वी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिड़िया ने अपनी सारी कहानी कह डाली।

कठफोड़वी बोली, ‘‘इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमें कुछ करना होगा।’’

चिड़िया ने निराशा दिखाते हुए कहा, ‘‘हम छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?’’

कठफोड़वी ने समझाया, ‘‘एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोड़ेंगे।’’

‘‘कैसे?’’ चिडिय़ा ने पूछा।

मेरा एक मित्र विआंख नामक भंवरा है। हमें उससे सलाह लेनी चाहिए। चिड़िया और कठफोड़वी भंवरे से मिलीं। भंवरा गुनगुनाया, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र है, आओ, उससे सहायता मांगें।’’
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अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे जहां वह मेंढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राए स्वर में बोला, ‘‘आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पानी में बैठकर सोचता हूं।’’

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखें चमक रही थीं। वह बोला, ‘‘दोस्तों! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बड़ी अच्छी योजना आई है। उसमें सभी का योगदान होगा।’’

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई, सब खुशी से उछल पड़े। योजना सचमुच अद्भुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।’’
 
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कुछ ही दूर वह उत्पाती हाथी तोड़-फोड़ मचाकर, पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खड़ा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोड़वी ने अपना काम कर दिखाया। वह आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डालीं। हाथी की आंखें फूट गईं। वह तड़पता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढ़ता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाड़ते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।
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मेंढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बड़े गड्डे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेंढक टर्राने लगे। मेंढकों की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खड़े हो गए। वह यह जानता था कि मेंढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पड़ा। टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा। जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेंढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरू किया। हाथी आगे बढ़ा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पड़ा जहां उसके प्राण पखेरु उड़ते देर न लगी। इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।
 
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