Inspirational Story: ‘जीत विश्वास की’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Apr, 2021 10:21 AM

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सुमन वन में सोनू बंदर और सोनी बंदरिया रहते हैं। सोनू ने वन में ही नीम के पेड़ के पास झोंपड़ी बना रखी थी। उनके हंसमुख और मजाकिया स्वभाव से सभी वनवासी खुश रहते हैं। रोज सुबह सोनू टिफिन लेकर काम पर

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Inspirational Story: सुमन वन में सोनू बंदर और सोनी बंदरिया रहते हैं। सोनू ने वन में ही नीम के पेड़ के पास झोंपड़ी बना रखी थी। उनके हंसमुख और मजाकिया स्वभाव से सभी वनवासी खुश रहते हैं। रोज सुबह सोनू टिफिन लेकर काम पर चला जाता है। सोनी घर का काम करके दोपहर में टी.वी. देखती या रेडियो सुनती। शाम के बाद सोनू लौटता। हाथ-मुंह धोकर चाय पीकर थोड़ा आराम करता। सोनी रसोई बनाने में लग जाती। रसोई तैयार होने पर सोनू को आवाज लगाती। उसके आने पर दोनों साथ बैठकर भोजन करते। भोजन के बाद थोड़ी देर टहलने निकल जाते। उनका जीवन मौज-मस्ती से बीत रहा था।

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दीपावली के दिन सुबह सोनू टिफिन लेकर जाने लगा। सोनी बोली, ‘‘स्वामी! शाम से पहले घर लौट आना। दीपावली पूजन की तैयारी और बाजार से खरीददारी साथ ही करेंगे। हामी में सिर हिलाते हुए सोनू रवाना हो गया। दोपहर जैसे-तैसे बीती। शाम होते ही सोनी की नजर बार-बार दरवाजे पर जा रही थी। सोनू अभी तक नहीं आया। शायद काम ज्यादा हो गया होगा... या फिर कोई सामान लेकर लौट रहे होंगे। ऐसे विचार उसके मन में आने लगे।

धीरे-धीरे शाम रात में बदलने लगी। वनवासी दीपावली पूजन की तैयारी करके दीप अपने घर और आसपास लगाने लगे। दीपों की रोशनी में वन जगमगा रहा था। केवल सोनू की झोंपड़ी ही ऐसी थी जहां न कोई उजियारा था और न ही दीप जले थे। झोंपड़ी में अंधेरा देख आसपास रहने वाले वनवासी उसके पास पहुंचने लगे। कारण पूछने पर वह रोते हुए कहने लगी, पता नहीं वे अभी तक क्यों नहीं आए? सुबह जाते वक्त जल्दी आने को कह गए थे।

उसे ढांढस बंधाते वनवासी बोले, ‘‘कुछ जरूरी काम आ गया होगा, फिक्र नहीं करो। अरे आज खुशी का दिन है, रोना नहीं चाहिए। चलो एक दीप ही जलाओ मगर सोनी ने इंकार कर दिया। वनवासी समझाइश देकर जाते जा रहे थे। बाहर पटाखों की आवाज आ रही थी। मन में सोनी कह रही थी, ये पटाखे मेरा दिल तोड़े जा रहे हैं। फिर हाथ जोड़कर बोली, ‘‘हे मां लक्ष्मी! मुझ पर रहम कर, मेरे सुहाग को सकुशल जल्दी से मेरे पास पहुंचाओ। धीरे-धीरे वनवासियों द्वारा जलाए दीप बुझने लगे। पटाखों की आवाजें भी कम होने लगीं। तब सोनू लौटा। बाहर से उसने देखा पलंग पर बैठी सोनू रो रही है। उसने झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया। दौड़ते हुए सोनी आई। उससे लिपट गई और पूछने लगी, ‘‘कहां रह गए थे स्वामी? यहां शाम से ही हाल बुरा है। रो-रोकर आंखें सूज गईं। देखो सारे वनवासियों ने लक्ष्मी पूजा करके दीप जलाकर पटाखे छोड़ दिए। एक हमारी झोंपड़ी अंधेरे में रही।’’

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सोनू बोला, ‘‘अब हमारी झोंपड़ी भी जगमगाएगी। हम साथ में दीप जलाएंगे। उसने सोनी को सारी बात बतलाई तो वह बोली आप सुबह ही बतला देते। इतनी बात नहीं होती।

‘‘पगली मैं तुझे सरप्राइज देना चाहता था।’’ कहते हुए सोनू ने झोले से एक पैकेट निकाला।

पैकेट खोलकर साड़ी निकालकर सोनी को देते हुए बोला, ‘‘जल्दी से इसे पहनकर लक्ष्मी पूजा की तैयारी करो। ये रहा सारा सामान। साड़ी और सारा सामान लेकर सोनी चली गई।’’

सोनू ने भी हाथ-मुंह धोकर नया सूट पहन लिया। थोड़ी देर में सोनी आई और बोली, ‘‘स्वामी! लक्ष्मी पूजा की तैयारी कर ली है। सोनू बोला, ‘‘चल जल्दी से हम दीए जलाकर झोंपड़ी के अंदर और बाहर रखें। ये नजारा अलग ही होगा। लक्ष्मी पूजा के बाद मिठाई खाकर पटाखे छोड़ेंगे। उन्होंने मिलाकर दीप जलाए, झोंपड़ी के अंदर और बाहर रखे।

लक्ष्मी पूजा करके एक-दूसरे को बधाई देकर मिठाई खाने के बाद पटाखे लेकर झोंपड़ी के बाहर आए। पटाखे छोडऩे लगे। पटाखों की आवाज सुनकर आसपास वाले वनवासी देखने लगे। बहुत से उनके पास आए।

हंस कर बोले, ‘‘वाह...वाह...क्या बात है ऐसा लग रहा है जैसे सारा उजियारा सिमटकर यहां आ गया।’’

सोनू बोला, ‘‘आप सच कह रहे हैं, सारा उजियारा यहीं है और हमेशा रहेगा। जानते हैं कि इस उजियारे का नाम क्या है? सभी उत्सुकता से बोले, ‘‘नहीं...नहीं...नहीं। सोनी को अपने करीब लाकर वह बोला, ‘‘यह है प्यार तथा विश्वास का उजियारा...।’’ यह सुन सभी ताली बजाकर कहने लगे वाह सोनू क्या बात कही है जो सौ फीसदी सही है। सोनू और सोनी मुस्कुरा दिए।

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