Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 May, 2023 09:59 AM
एक दिन प्रसिद्ध लेखक टॉलस्टॉय सुबह पांच बजे चर्च गए। सोचा वहां शांत वातावरण में प्रार्थना सुन सकूंगा किन्तु उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनसे पहले भी
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Leo Tolstoy story: एक दिन प्रसिद्ध लेखक टॉलस्टॉय सुबह पांच बजे चर्च गए। सोचा वहां शांत वातावरण में प्रार्थना सुन सकूंगा किन्तु उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनसे पहले भी एक व्यक्ति वहां पर पहुंच चुका है और वह कह रहा है, ‘‘हे भगवान, मैंने इतने अधिक पाप किए हैं कि मुझे कुछ कहते हुए शर्म आ रही है। अत: हे परमात्मा, मेरे पापों को क्षमा करना।’’ टॉलस्टॉय ने सोचा यह व्यक्ति कितना महान है, सच्चे दिल से अपना अपराध स्वीकार कर रहा है।
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दरअसल, वह उसी शहर का एक सेठ था। टॉलस्टॉय को देख कर वह घबरा गया। उसने पूछा, ‘‘तुमने मेरी बात सुनी तो नहीं?
टॉलस्टॉय ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी स्वीकृति सुनकर धन्य हो गया।
वह व्यक्ति बोला, ‘‘लेकिन यह बात तुम किसी से नहीं कहना। ये बातें मेरे और परमेश्वर के बीच की थीं।’’
टॉलस्टॉय सुनकर दंग रह गए और बोले अभी-अभी तो तुम कह रहे थे कि हे ईश्वर, मेरे अपराध को क्षमा कर देना। मैं आगे से कोई गलत काम नहीं करूंगा।
उनकी बात काटते हुए वह व्यक्ति बोल उठा, ‘‘हां, मगर मैंने जो कुछ कहा था, वह परमात्मा के लिए कहा था, दुनिया के लिए नहीं।
टॉलस्टॉय हैरान होकर उस मनुष्य के पाखंड के बारे में सोचने लगे। फिर उन्होंने उससे कहा, ‘‘जो मनुष्य के सामने अपनी सच्चाई प्रकट नहीं कर सकता, वह परमात्मा के समक्ष भी सच्चा नहीं हो सकता। अगर तुम अंदर से नहीं बदले तो तुम्हारे पश्चाताप का क्या मतलब हुआ?’’
टॉलस्टॉय की बात सुनकर वह व्यक्ति सोच में पड़ गया फिर बोला, ‘‘तुमने मेरी आंखें खोल दीं। मैं अंजाने ही ईश्वर को धोखा देने चला था। मुझे समझ आ गया कि अपनी बुराई लोगों को बताकर ही अपनी गलतियों को सुधार सकता हूं।’’