Inspirational Story: हीरे और पत्थर का अंतर जानने वाले धरती पर भी भोगते हैं स्वर्ग का आनंद

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Jun, 2023 09:22 AM

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जय नगर के राजा कृष्णदेवराय ने जब राजगुरु व्यासराय से संत पुरन्दरदास के सादगी भरे जीवन और लोभ से मुक्त होने की प्रशंसा सुनी, तो उन्होंने संत की परीक्षा लेने

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Inspirational Story: जय नगर के राजा कृष्णदेवराय ने जब राजगुरु व्यासराय से संत पुरन्दरदास के सादगी भरे जीवन और लोभ से मुक्त होने की प्रशंसा सुनी, तो उन्होंने संत की परीक्षा लेने की ठानी। एक दिन राजा ने सेवकों द्वारा संत को बुलवाया और उनको भिक्षा में चावल डाले। संत बोले, ‘‘महाराज ! मुझे इसी तरह कृतार्थ किया करें।’’

घर लौट कर पुरन्दरदास ने प्रतिदिन की तरह भिक्षा की झोली पत्नी सरस्वती देवी के हाथ में दे दी। किन्तु जब वह चावल बीनने बैठीं, तो देखा कि उसमें छोटे-छोटे हीरे हैं। उन्होंने उसी क्षण पति से पूछा, ‘‘कहां से लाए हैं आज भिक्षा?’’ पति ने जब कहा कि राजमहल से, तो पत्नी ने घर के पास के ‘घूरे’ में वे हीरे फैंक दिए।

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अगले दिन जब पुरन्दरदास भिक्षा लेने राजमहल गए, तो सम्राट ने फिर से झोली में चावल के साथ हीरे डाल दिए। ऐसा क्रम एक सप्ताह तक चलता रहा। सप्ताह के अंत में राजा ने व्यासराय से कहा, ‘‘महाराज ! मुझे तो पुरन्दर लोभी जान पड़ते हैं।’’ वे दोनों जब संत की कुटिया पर पहुंचे तो देखा कि सरस्वती देवी चावल बीन रही हैं।

कृष्णदेवराय ने कहा, ‘‘बहन !चावल बीन रही हो।’’

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सरस्वती देवी ने कहा, ‘‘हां भाई ! क्या करूं, कोई गृहस्थ भिक्षा में ये कंकड़ डाल देता है, इसलिए बनना पड़ता है। ये कहते हैं, भिक्षा देने वाले का मन न दुखे, इसलिए खुशी से भिक्षा ले लेता हूं।’’

राजा ने कहा, ‘‘बहन ! ये कंकड़ नहीं, ये तो मूल्यवान हीरे दिखाई दे रहे हैं।’’

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इस पर सरस्वती देवी ने कहा, ‘‘आपके लिए ये हीरे होंगे, हमारे लिए तो कंकड़ ही हैं। हमने जब तक धन के आधार पर जीवन व्यतीत किया, तब तक हमारी दृष्टि में ये हीरे थे। पर जब से भगवान का आधार लिया है और धन का आधार छोड़ दिया है, ये हीरे हमारे लिए कंकड़ ही हैं।’’ यह देख व्यासराय के मुख पर मंद मुस्कान फैल गई और कृष्णदेवराय माता सरस्वती के चरणों में झुक गए।

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