इंसान का मन है भिक्षा पात्र, जानिए क्यों?

Edited By ,Updated: 31 Oct, 2016 02:17 PM

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एक महल के द्वार पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। भीड़ बढ़ती ही जा रही थी और दोपहर से भीड़ शुरू हुई थी, अब सांझ होने को आ गई। सारा गांव ही करीब-करीब उस द्वार

एक महल के द्वार पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। भीड़ बढ़ती ही जा रही थी और दोपहर से भीड़ शुरू हुई थी, अब सांझ होने को आ गई। सारा गांव ही करीब-करीब उस द्वार पर इकट्ठा हो गया। राजमहल के द्वार पर ऐसा क्या हो गया था। एक छोटी सी घटना हो गई और घटना ऐसी बेबूझ थी कि जिसने सुना वह वहीं खड़ा होकर देखता रह गया। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। एक भिखारी सुबह-सुबह आया और उसने राजा के महल के सामने अपना भिक्षापात्र फैलाया। राजा ने अपने नौकरों से कहा कुछ दे दो इसे। उस भिखारी ने कहा एक शर्त पर लेता हूं। 

 

यह भिक्षापात्र उसी शर्त पर कोई चीज स्वीकार करता है जब यह वचन दिया जाए कि आप मेरे भिक्षापात्र को पूरा भर देंगे, तभी मैं कुछ लेता हूं।  राजा ने कहा, यह कौन-सी मुश्किल है, छोटा सा भिक्षापात्र है, पूरा भर देंगे और अन्न से नहीं स्वर्ण अशर्फियों से भर देंगे। 

 

भिक्षुक ने कहा और एक बार सोच लें, पीछे से पछताना न पड़े। क्योंकि इस भिक्षापात्र को लेकर मैं और द्वारों पर भी गया हूं और न मालूम कितने लोगों ने यह वचन दिया था कि वे इसे पूरा भर देंगे लेकिन वे इसे पूरा नहीं भर पाए और बाद में उन्हें क्षमा मांगनी पड़ी। राजा हंसने लगा और उसने कहा कि छोटा सा भिक्षापात्र। उसने अपने मंत्रियों को कहा कि स्वर्ण अशर्फियों से भर दो इसे। राजा स्वर्ण अशर्फियां डालता चला गया परंतु भिक्षापात्र कुछ ऐसा था कि भरता ही नहीं था। सारा गांव देखने के लिए द्वार पर इकट्ठा हो गया था। किसी को समझ में कुछ भी नहीं पड़ता था कि क्या हो गया है? राजा का खजाना चुक गया। सांझ हो गई, सूरज ढलने लगा लेकिन भिक्षा का पात्र खाली था। तब राजा भी घबराया पैरों पर गिर पड़ा उस भिक्षु के और बोला क्या है इस पात्र का रहस्य? क्या है जादू। भरता क्यों नहीं? 

 

उस भिखारी ने कहा कि कोई जादू नहीं है, कोई रहस्य नहीं है, बड़ी सीधी सी बात है। मैं एक मरघट से जा रहा था वहां पर एक आदमी की खोपड़ी मिल गई। उसे ही मैंने भिक्षापात्र बना लिया और आदमी की खोपड़ी कभी भी किसी चीज से भरती नहीं है इसलिए यह भी नहीं भरता है। हम भी ठीक इस भिक्षा के पात्र की तरह ही हैं। चाहे हम कितना ही क्यों न पा लें हम भी कभी भरते नहीं हैं क्योंकि हम मन के सहारे जीते हैं।

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