जानिए, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का साधन

Edited By ,Updated: 05 Dec, 2016 10:14 AM

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सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल एक अति सूक्ष्म सर्वव्याप्त चेतना थी। यह चेतना ‘आदि शक्ति’ के रूप में प्रकट हुई और उनके हिरण्यगर्भ से सभी कुछ उत्पन्न हुआ। इस सृष्टि के संचालन

सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल एक अति सूक्ष्म सर्वव्याप्त चेतना थी। यह चेतना ‘आदि शक्ति’ के रूप में प्रकट हुई और उनके हिरण्यगर्भ से सभी कुछ उत्पन्न हुआ। इस सृष्टि के संचालन के लिए आदि-शक्ति ने स्वयं को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तथा इस संसार को मूर्त रूप देने के लिए "जड़ प्राण  (वायु, जल , आकाश, पृथ्वी और अग्नि) और चेतन प्राण के रूप में प्रकट किया। ब्रह्माजी ने इसकी संरचना का कार्य भार संभाला, विष्णुजी ने इसके पालन पोषण का और भगवान शिव ने इसके परिवर्तन का। यही ‘प्राण’ विभिन्न आवृतियों के परिकम्पन पर स्थित हो कर इस ब्रह्माण्ड के हर पदार्थ को भिन्न रूप प्रदान करते है। मनुष्य में यह प्राण, सूक्ष्म चक्रों के रूप में ऊर्जा केंद्र निर्मित करते है। प्रत्येक चक्र उस व्यक्ति विशेष की मानसिक, आर्थिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर का द्योतक है। 

 

विष्णु की 'माया' शक्ति द्वारा ही सभी आत्माएं इस सृष्टि के कर्म चक्र से बंधी रहती हैं किन्तु जिन आत्माओं को इस भौतिक संसार की निरर्थकता का अनुभव हो जाता है, वह महादेव अर्धनारेश्वर की कृपा से इस सृष्टि के आवागमन से बाहर हो जाती हैं। मनुष्य का आत्मिक उत्थान प्रत्येक चक्र से ऊपर उठने की एक प्रक्रिया है जो केवल कुण्डलिनी शक्ति की जागृति द्वारा संभव है। यह शक्ति हमारे मूल चक्र में सुप्त अवस्था में रहती है। इस शक्ति की जागृति तथा प्रत्येक चक्र से उन्हें ऊपर उठाना केवल भगवान शिव के द्वारा ही संभव है। जिनका स्थान मनुष्य के आज्ञा चक्र में निहित है। वह स्वयं,  माता शक्ति को जागृत करने के लिए मूल चक्र तक नीचे आते है और प्रत्येक चक्र पर मिलकर शक्ति को ऊपर उठाते है। उनके मिलन से जो शक्ति उत्पन्न होती है, वह प्रत्येक चक्र के उत्थान को सक्षम बनाती है। इस उत्थान से एक योगी उस चक्र द्वारा नियंत्रित सभी इच्छाओं पर काबू पा लेता है।

 

चूंकि कुंडलिनी एक विशुद्ध शक्ति है, उसे गुरु सानिध्य में ही जागृत किया जाता है। यदि उसे अनियंत्रित रूप से जागृत किया जाए तो वह शक्ति मानव शरीर को नष्ट कर सकती है। 'योग' का अर्थ है, परमात्मा से मिलन, गुरु सानिध्य में इसके नियमित अभ्यास से कोई भी व्यक्ति इस संसार की निरर्थकता का अनुभव कर सकता है और 'माया' के बंधनों से मुक्त हो सकता है, अर्थात जन्म-मरण, दुःख-सुख और इच्छाओं के चक्र से मुक्त हो सकता है।  
योगी अश्विनी जी
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