Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Aug, 2017 05:38 PM
कुछ लोग सोचते हैं कि चुपचाप रहना अध्यात्म है। कुछ समझते हैं कि खुशी में रहना ही अध्यात्म है। अध्यात्म इन दोनों का तालमेल
कुछ लोग सोचते हैं कि चुपचाप रहना अध्यात्म है। कुछ समझते हैं कि खुशी में रहना ही अध्यात्म है। अध्यात्म इन दोनों का तालमेल है, उसमें बाहर से आप चुप नजर आते हैं, भीतर खुश रहते हैं! हमारे जीवन में दो तरह के उत्सव होते हैं। एक जब हम धन्यवाद या आभार प्रकट करते हैं, यह किसी ईश्वर के प्रति होता है। दूसरा होता है कि हम अतीत को भूलाकर जीवन में आगे बढ़ने का फैसला करते हैं और यह मानते हैं कि जीवन अनंत है तो फिर कहीं रुक जाने या बैठ जाने की क्या तुक है? किसी भी तरह जीवन में खुश रहना या खुशी मनाना अच्छा है। वास्तविक उत्सव तो यही है कि बिना किसी आयोजन के भी आप प्रसन्न रहते हैं।
अगर उत्सव आपको अपने आसपास से जोड़ता है, आपको दुखद अतीत से मुक्त करता है और भविष्य की उम्मीद बंधाता है, तब आप अतीत के काम का बोझ नहीं महसूस करेंगे। उत्सव का ही एक तरीका है दूसरों की सेवा करना। यह बहुत ही पवित्र काम है। दूसरों की मदद करने में खुशी की तलाश कीजिए, तब आप निश्चित ही आनंद पाएंगे।
जब किसी भी खुशी में पवित्रता और प्रार्थना जुड़ जाती है तो उसमें गहराई और प्रतिष्ठा आ जाती है। तब वह मस्तिष्क के लिए केवल मनोरंजन और शरीर के लिए रोमांच नहीं रह जाता है बल्कि इनसे बढ़कर वह आत्मा के लिए जरूरी पोषण बन जाता है। मन में किसी भी तरह की ईर्ष्या रखकर खुशी की तलाश नहीं की जा सकती है, बल्कि उसे तलाशने के लिए तो आपको उदारता से किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ाना होगा। खुशी तो हमारे जीने का एक ढंग है और खुशी पाने के लिए आपको बहुत सारा पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है। खुशी मिलती है आपके उत्साह और काम करने के ढंग से।
आपको अतीत की दुखद घटनाओं से मुक्त होकर खुशी की तरफ कदम बढ़ाने की जरूरत होती है। आपके पास जो कुछ भी है उसे दूसरों के साथ बांटिए तो आप पाएंगे कि आपने खुशी तलाश ली है। भविष्य का स्वागत मुस्कुराहट के साथ कीजिए। यह मुस्कुराहट तब आएगी जब आप इस तरह से सोचेंगे कि आपका भविष्य सुंदर ही होगा।