Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Sep, 2017 11:22 AM
भावनगर में एक महान संत थे बाबा मस्तराम। वह त्याग और तपस्या की साक्षात मूर्ति
भावनगर में एक महान संत थे बाबा मस्तराम। वह त्याग और तपस्या की साक्षात मूर्ति थे। बाबा भगवान की याद में सदा मस्त रहते थे जिससे उनके भक्त उन्हें मस्तराम कहा करते थे। वह श्रद्धालुओं को दूसरों की सेवा करने और जरूरतमंदों की सहायता करने की प्रेरणा देते रहते थे। वह अपने शिष्यों को अक्सर बताते थे कि परोपकार और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं। एक दिन की बात है। सर्दी का मौसम था। भीषण ठंड पड़ रही थी। बाबा मस्तराम अपने आश्रम के बाहर एक खुली जगह पर सोए हुए थे। उनके शिष्य आसपास बैठे थे।
भावनगर के राजा घोड़ागाड़ी में उधर से गुजर रहे थे। राजा की नजर सोते हुए मस्तराम पर पड़ी। राजा ने देखा कि बाबा के बदन पर गर्म कपड़े नहीं हैं। इस सर्दी में बाबा को कितनी तकलीफ हो रही होगी, यह सोचकर राजा ने अपनी कीमती शाल उन्हें ओढ़ा दी और चुपचाप आगे बढ़ गए। कुछ देर बाद बाबा की आंख खुली तो उन्होंने देखा कि उनके शरीर पर एक शाल है।
शिष्यों ने बताया कि राजा खुद उन्हें शाल ओढ़ा गए हैं तो बाबा बोले, ‘‘साधु को शाल से क्या काम? मेरा शरीर तो ठंड को सहन करने का आदी हो चुका है। यह शाल किसी को ठंड से बचाने में काम आनी चाहिए।’’
बाबा वहां से उठे और अपने भक्तों के साथ आगे चल दिए। वह अभी कुछ ही दूर चले थे कि उन्होंने एक कुत्ते को ठंड से ठिठुरते-कांपते हुए देखा। वह कुत्ते के नजदीक गए और इत्मिनान से शाल उसके पीठ और पेट वाले हिस्से में लपेट दी। इसके बाद वह बेफिक्र भाव से आगे बढ़ गए।
एक भक्त से रहा नहीं गया। उसने पूछा, ‘‘बाबा, राजा की दी हुई वह कीमती शाल आपने कुत्ते को ओढ़ा दी।’’
इस पर बाबा हंसे और बोले, ‘‘उसकी नजर में कोई अंतर नहीं है। सारे जीव उसी की संतान हैं इसलिए दुख जिसका भी दूर कर सको, बेहिचक करो।’’