इस्कॉन के संस्थापक की आत्मकथा मई से बाजार में उपलब्ध होगी

Edited By Jyoti,Updated: 11 Apr, 2022 02:34 PM

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नई दिल्ली: इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद की अधिकृत आत्मकथा 14 मई से बाजार में उपलब्ध होगी। यह जानकारी ‘पेइंगुइन रेंडम हाउस इंडिया'' ने रविवार को दी। ‘सिंग, डांस एडं'' प्रे'' शीर्षक वाली इस

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नई दिल्ली: इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद की अधिकृत आत्मकथा 14 मई से बाजार में उपलब्ध होगी। यह जानकारी ‘पेइंगुइन रेंडम हाउस इंडिया' ने रविवार को दी। ‘सिंग, डांस एडं' प्रे' शीर्षक वाली इस आत्मकथा को लेखक हिंडोल सेनगुप्ता ने लिखा है। यह श्रील प्रभुपाद की एक प्रेरणाजनक कहानी है जो पश्चिमी प्रतिसंस्कृति के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरे और उन्होंने 20वीं सदी के मध्य में मुख्यधारा के अमेरिकियों के सामने वैदिक भारत की प्राचीन शिक्षाओं को रखा जिसने लेखक-कवि एलन गिन्सबर्ग से लेकर बीटल्स के प्रमुख गिटारवादक जॉर्ज हैरिसन तक को आकर्षित किया और उनके 100 से ज्यादा देशों में लाखों अनुयायी हैं। सेनगुप्ता ने एक बयान में कहा, “ मैं हमेशा से जानता था कि मेरी 10वीं किताब बहुत खास होगी। यह श्रील प्रभुपाद की कहानी है जो इसे खासकर धन्य बनाती है। यह इतिहास की अविश्वसीय कहानी है, भारत की कथा का अहम मोड़ है और यह वह क्षण है जब अकेले व्यक्ति ने कई तरह से भारत और हिंदू धर्म के प्रति वैश्विक नजरिए को बदल दिया।” 
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उन्होंने कहा, “श्रील प्रभुपाद हर तरीके से मौलिक थे, वह पथ प्रदर्शक थे और शानदार तरीके से वह जितना दुनिया के व्यक्ति थे उतना ही भगवान के बंदे थे।”

सेनगुप्ता के मुताबिक, “ उनकी कहानी न सिर्फ धार्मिक इतिहास के बारे में है बल्कि पूर्व-पश्चिम संवाद को लेकर अहम पल के बारे में भी है जो शायद पहले से ज्यादा अधिक प्रासंगिक है।” 

उनकी पूर्व की किताबों में ‘बीइंग हिंदू', ‘द सैक्रेड सोर्ड' और ‘द मॉडर्न मॉन्क' शामिल हैं। 17 सितंबर 1965 को जब एसी भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क शहर के बंदरगाह पर कदम रखे तो कुछ अमेरिकियों ने उन पर ध्यान दिया, लेकिन वह अन्य की तरह सिर्फ प्रवासी नहीं थे।
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वह वैदिक भारत की प्राचीन शिक्षाओं को अमेरिका की मुख्यधारा से परिचित कराने के मिशन पर थे। श्रील प्रभुपाद का 81 साल की उम्र में 14 नवंबर 1977 को निधन होने से उनका मिशन सफल हो गया। उन्होंने इस्कॉन की स्थापना की जिसे ‘हरे कृष्णा मूवमेंट' के नाम से भी जाना जाता है और यह दुनियाभर में फैला तथा 100 से ज्यादा मंदिर, आश्रम और सांस्कृतिक केंद्र बने। प्रकाशकों के अनुसार, करिश्माई व्यक्तित्व श्रील प्रभुपाद की कहानी व्यक्ति को आत्मबोध के मार्ग पर ले जाएगी। 
 

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