Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Jan, 2018 03:00 PM
एक बार अरस्तू के पास एक व्यक्ति आया। वह बहुत दुखी व निराश था। उसने अरस्तू से कहा कि वह जीवन से निराश है और मरना चाहता है। यह कहकर वह रो पड़ा। उसका विचार था कि अरस्तू उसकी समस्या का समाधान करेंगे मगर अरस्तू ने कहा,
एक बार अरस्तू के पास एक व्यक्ति आया। वह बहुत दुखी व निराश था। उसने अरस्तू से कहा कि वह जीवन से निराश है और मरना चाहता है। यह कहकर वह रो पड़ा। उसका विचार था कि अरस्तू उसकी समस्या का समाधान करेंगे मगर अरस्तू ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में तो तुम्हारा मर जाना ही अच्छा है। जो लोग निराशा में जिया करते हैं, उनका जीवन मौत से भी बदतर है। आशावादी मनुष्य का ही जीवन सार्थक होता है। आशावाद ही मनुष्य का मानसिक सूर्योदय है। इससे जीवन का निर्माण होता है। अगर तुम आशावादी नहीं बन सकते तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ है।’’
वास्तव में खुशी और निराशा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कभी-कभी हमें अकारण ही मानसिक उदासी के दौर से दो-चार होना पड़ता है। बहुत-से लोग जीवन-संग्राम की कंटीली राहों पर चलने से पूर्व ही अपने हथियार डाल देते हैं। ऐसे लोग घोर निराशावादी होते हैं, जो अपनी क्षमता के प्रदर्शन से पूर्व ही खुद को पराजित महसूस करते हैं। उन्हें दुनिया की कोई ताकत विजयी नहीं बना सकती।
ऐसे इंसान की तुलना उस किसान से की जा सकती है जो इस आशंका में अपना खेत नहीं जोतता कि इस साल बारिश नहीं होगी, सूखा पडऩा तय है। निराशा के अतिरेक की लहरें हमारे जीवन के उत्साह के साथ जीवन की खुशियों को भी बहा ले जाती हैं। यदि तुम सोचते हो कि मैं पराजित हो जाऊंगा तो तुम पराजित हो चुके हो। यदि तुम सोचते हो कि मैं जीतने के लिए यह कार्य कर रहा हूं, पर जीतूंगा नहीं तो हार चुके हो। जिंदगी की जंग में अधिक बलवान व्यक्ति ही विजयी नहीं होता। जो आशावादी विचारों के साथ यह सोच लेता है कि मुझे विजयी होना है, वही विजयी होता है।
इसलिए जीवन में सफल होने के लिए निराशा छोड़कर आशावान बनो। उदासी व निराशा जीवन के प्रतीक नहीं हैं। मुंशी प्रेमचंद कहते हैं कि ‘‘जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब निराशा में भी आशा होती है। निराशा पर विजय प्राप्त करके जीवन को उसके वास्तविक लक्ष्य की तरफ अग्रसर कीजिए।’’
जीवन का वास्तविक लक्ष्य परोपकार और उससे मिलने वाला आनंद ही है। हम अगर निराशा से घिरे हुए होंगे तो न तो खुद को सुख दे पाएंगे और न ही दूसरों को।