योगी बनने के लिए इच्छा त्यागना जरूरी

Edited By ,Updated: 17 Mar, 2017 02:42 PM

it is necessary to abandon desire to become a yogi

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद  अध्याय छह ध्यानयोग यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पांडव।  न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन।।2।।

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद 


अध्याय छह ध्यानयोग


यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पांडव। 
न ह्यसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन।।2।।


शब्दार्थ : यम—जिसको; संन्यासम्—संन्यास; इति—इस प्रकार; प्राहु:—कहते हैं; योगम्—परब्रह्म के साथ युक्त होना; तम्—उसे; विद्धि—जानो; पांडव—हे पांडुपुत्र; न—कभी नहीं; हि—निश्चय ही; असंन्यस्त—बिना त्यागे; सङ्कल्प: —आत्मतृप्ति की इच्छा; योगी—योगी; भवति—होता है; कश्चन—कोई।


अनुवाद : हे पांडु पुत्र! जिसे संन्यास कहते हैं उसे ही तुम योग अर्थात परब्रह्म से युक्त होना जानो क्योंकि इंद्रियतृप्ति के लिए इच्छा को त्यागे बिना कोई कभी योगी नहीं हो सकता।


तात्पर्य : वास्तविक संन्यास योग या भक्ति का अर्थ है कि जीवात्मा अपनी स्वाभाविक स्थिति को जाने और तदनुसार कर्म करे। जीवात्मा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। वह परमेश्वर की तटस्थ शक्ति है। जब वह माया के वशीभूत होता है तो वह बद्ध हो जाता है किन्तु जब वह कृष्णभावनाभावित रहता है अर्थात आध्यात्मिक शक्ति में सजग रहता है तो वह अपनी सहज स्थिति में होता है।


इस प्रकार जब मनुष्य पूर्ण ज्ञान में होता है तो वह समस्त इंद्रियतृप्ति को त्याग देता है अर्थात समस्त इंद्रियतृप्ति के कार्यकलापों का परित्याग कर देता है। इसका अभ्यास योगी करते हैं जो इंद्रियों को भौतिक आसक्ति से रोकते हैं किन्तु कृष्णभावनाभावित व्यक्ति को तो ऐसी किसी भी वस्तु में अपनी इंद्रिय लगाने का अवसर ही नहीं मिलता जो कृष्ण के निमित्त न हो। फलत: कृष्णभावनाभावित व्यक्ति संन्यासी तथा योगी साथ-साथ होता है।


ज्ञान तथा इंद्रियनिग्रह योग के ये दोनों प्रयोजन कृष्णभावनामृत द्वारा स्वत: पूरे हो जाते हैं। यदि मनुष्य स्वार्थ का त्याग नहीं कर पाता तो ज्ञान तथा योग व्यर्थ रहते हैं। जीवात्मा का मुख्य ध्येय तो समस्त प्रकार के स्वार्थों को त्याग कर परमेश्वर की तुष्टि करने के लिए तैयार रहना है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति में किसी प्रकार के स्वार्थ की इच्छा नहीं रहती। वह सदैव परमेश्वर की प्रसन्नता में लगा रहता है, अत: जिसे परमेश्वर के विषय में कुछ भी पता नहीं होता वही स्वार्थ पूर्ति में लगा रहता है, क्योंकि कोई निष्क्रिय नहीं रह सकता। कृष्णभावनामृत का अभ्यास करने से सारे कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हो जाते हैं। 

(क्रमश:)

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!