जम्मू कश्मीर की चिनाब घाटी के पास स्थित है दर्शनीय जिला 'डोडा', आप भी निहारें इसकी खूबसूरती

Edited By Jyoti,Updated: 16 Feb, 2021 12:39 PM

jammu and kashmir district doda

माना जाता है कि डोडा जिले का नाम मुल्तान के एक प्रवासी बर्तन निर्माता ‘डीडा’ के नाम पर रखा गया था। जम्मू-कश्मीर की चिनाब घाटी में स्थित यह जिला एक दर्शनीय इलाका है।

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माना जाता है कि डोडा जिले का नाम मुल्तान के एक प्रवासी बर्तन निर्माता ‘डीडा’ के नाम पर रखा गया था। जम्मू-कश्मीर की चिनाब घाटी में स्थित यह जिला एक दर्शनीय इलाका है। ऊधमपुर जिले से अलग करके बनाए डोडा जिले की स्थापना 1948 में हुई थी। राज्य सरकार ने जुलाई 2006 में डोडा जिले को तीन जिलों अर्थात् डोडा, रामबन और किश्तवाड़ में विभाजित किया। इसके पश्चिम में रामबन जिला है।

लेह जिला इसके दक्षिण-पूर्व में स्थित है। डोडा की कुछ सबसे प्रसिद्ध पर्वत चोटियों में शामिल हैं मार्बल पास, सुरू बॉर्डर पर नुनकुन और दो अन्य प्रसिद्ध चोटियां हैं ब्रह्मा तथा मून सिकल।

यह जिला प्राकृतिक सुंदरता और संसाधनों का विशाल भंडार है। साथ ही नैसर्गिक दृश्य, पर्यटकों की रुचि के स्थान, वर्ष भर बर्फ से ढंके रहने वाले पहाड़ और चुनौतीपूर्ण ट्रैकिंग मार्ग यहां सभी को आकर्षित करते हैं।

जिले में पुरातात्विक महत्व के स्मारकों में भद्रवाह में एक किला भी शामिल है। यह समृद्ध खनिज भंडार जैसे सीसा, माइका, जिप्सम, मैंगनीज, संगमरमर, ग्रेफाइट और तांबा आदि के लिए भी जाना जाता है। दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियां भी यहां पाई जाती हैं। 

लाल द्रमन
लाल द्रमन विभिन्न प्रकार के आकर्षणों से भरपूर है जैसे कि सुंदर परिदृश्य, अद्वितीय शिल्प संस्कृति, अत्यंत सुखदायक गर्मी, प्राकृतिक भव्यता के अनेक स्थल तथा सर्दियों में बर्फ आदि। डोडा शहर के केन्द्र से लगभग 25 किलोमीटर दूर यह स्थान चिनाब घाटी की सबसे अच्छी और खूबसूरत जगहों में से एक है। यहां से भद्रवाह घाटी तथा पत्नी टॉप के साथ हरी घास के मैदान, रिसॉर्ट के बीच झील तथा फूलों के मैदान नजर आते हैं।

स्वर्गीय मोहम्मद शेख अब्दुल्ला सहित विभिन्न राजनेताओं के लिए लाल द्रमन एक पसंदीदा स्थान रहा है। इसकी संस्कृति अन्य स्थानों से बहुत अलग है। यह अपने मेले के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की बोली ‘सराजी’ है। यहां मंदिर तथा मस्जिद दोनों एक साथ बनी हैं जो सद्भाव, शांति और भाईचारे के प्रतीक हैं।

चिंता घाटी
समुद्र तल से 6,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित सुरम्य चिंता घाटी के चारों ओर घने शंकुधारी वन हैं जिसमें से होकर चिन्ता नाला बहता है। स्थान के आस-पास अनेक दर्शनीय स्थल हैं।ऐसी ही एक जगह को थूबा के नाम से जाना जाता है जो चिन्ता नाले के पार स्थित है। बग्गन से थूबा तक घोड़े की सवारी आनंददायक है। थूबा यहां का उच्चतम बिंदू है जो चिंता घाटी को भद्रवाह से अलग करता है। इस जगह भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी है।

भद्रवाह-चिंता मार्ग पर घाटी से 6 किलोमीटर पहले प्रसिद्ध सुबरनाग शिखर के लिए एक रास्ता जाता है जिस पर सुबरनाग मंदिर (10,200 फुट) स्थित है। मंदिर से पूरी भद्रवाह और ङ्क्षचता घाटी का सुंदर नजारा दिखाई देता है। दूर तक विशाल घास के मैदानों का विस्तार इसे प्रकृति का खजाना बनाता है।

गुप्त गंगा मंदिर
गुप्त गंगा मंदिर नीरू नदी के तट पर स्थित भद्रवाह का प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर के केन्द्र से कुछ ही दूर है। नेरू नदी शक्तिशाली चिनाब की एक सहायक नदी है। यदि आप भद्रवाह में हैं तो इस स्थान पर जाना आवश्यक है। मूल रूप से यह एक शिव मंदिर है जिसमें विशाल और सुंदर शिवलिंग है। किंवदंती है कि पांडवों ने यहां आकर गुप्त रूप से गंगा नदी के जल की व्यवस्था की थी इसीलिए इसे गुप्त गंगा मंदिर के नाम से जाना जाता है।

मंदिर के भीतर एक चट्टान पर भीमसेन के पदचिह्न भी हैं। एक लम्बी गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान भद्रवाह से कश्मीर पहुंचने के लिए इसे इस्तेमाल किया था। मंदिर का गुंबद पत्थरों से बना है। मंदिर में शुद्ध जल की धारा बहती है जो दिन-रात शिवलिंग पर गिरती है। पूरा नजारा इतना आकर्षक है कि देखने वाले अपनी आंखें बंद नहीं कर पाते। यहां से पानी एक ‘बावली’ (तालाब) में जाता है जहां साधु, भक्त और आगंतुक स्नान करते हैं। इसका पानी गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म होता है। पानी की धारा रहस्यमयी तरीके से मंदिर में आती है और पानी को गंगा नदी के समान ही पवित्र माना जाता है इसलिए इसे गुप्त गंगा कहा जाता है।

जामिया मस्जिद
भद्रवाह शहर में स्थित यह सबसे पुरानी तथा शानदार मस्जिद है। यह प्राचीन निर्माण कला का एक अद्भुत नमूना है। दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। मस्जिद भद्रवाह की सबसे अधिक शानदार इमारतों में से एक है। इसका प्रभावशाली डिजाइन लोगों को तुरंत आकर्षित करता है। इसमें दो हॉल, साइड रूम और चारों कोनों पर चार बुलंद मीनारों के साथ एक मुख्य इमारत है। इसकी वास्तुकला, गुणवत्तापूर्ण की कारीगरी शेष भारत में समान संरचनाओं के साथ मेल खाती है।

मस्जिद का अपना एक इतिहास है। 1928 में बादल फटने के कारण घाटी में एक भयानक बाढ़ आई। जल प्रलय ने शहर के प्रमुख हिस्से को नष्ट कर दिया। अनेक निवासियों के साथ ही पुरानी जामिया मस्जिद, स्कूल और अनाथालय भी नष्ट हो गए थे। -संजय नहार

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