Edited By Lata,Updated: 18 Aug, 2019 12:13 PM
जन्माष्टमी हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसे बाल गोपाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
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जन्माष्टमी हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जिसे बाल गोपाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के विषय में इस बार किसी प्रकार भी भ्रांति नहीं है। फिर भी कई लोग, अद्र्धरात्रि पर रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी और अष्टमी पर व्रत रखते हैं। कुछ भक्तगण उदयव्यापिनी अष्टमी पर उपवास करते हैं। शास्त्रकारों ने व्रत -पूजन, जपादि के लिए अद्र्धरात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी। विशेषकर स्मार्त लोग अद्र्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ आदि में में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अद्र्धरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं जबकि मथुरा, वृंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की परम्परा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाश की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत के लिए ग्रहण करते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि-
सुबह स्नान के बाद, व्रतानुष्ठान करके ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जाप करें। पूरा दिन व्रत रखें। फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के समय ठीक बारह बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें। प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़ कर, शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। चंद्रमा को अघ्र्य देकर नमस्कार करें । तत्पश्चात मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करें और बांटें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं।
व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर को साफ सुथरा करें और जन्माष्टमी की तैयारी शुरू करें। रोज की तरह पूजा करने के बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूॢत मंदिर में रखें और इसे अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं।
दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें। मध्य रात्रि को एक बार फिर पूजा की तैयारी शुरू करें। रात को 12 बजे भगवान के जन्म के बाद भगवान की पूजा करें और भजन करें। गंगा जल से श्री कृष्ण को स्नान कराएं और उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाएं और फिर भजन, गीत-संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।
जन्माष्टमी का व्रत रात बारह बजे तक किया जाता है। इस व्रत को करने वाले रात बारह बजे तक कृष्ण जन्म का इंतजार करते हैं। उसके पश्चात पूजा आरती होती है और फिर प्रसाद मिलता है। प्रसाद के रूप में धनिया और माखन मिश्री दिया जाता है क्योंकि ये दोनों ही वस्तुएं श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। उसके पश्चात प्रसाद ग्रहण करके व्रत पारण किया जा सकता है। हालांकि सभी के यहां परम्पराएं अलग-अलग होती हैं। कोई प्रात:काल सूर्योदय के बाद व्रत पारण करते हैं तो कोई रात में प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं। आप अपने परिवार की परम्परा के अनुसार ही व्रत पारण करें।