इंद्र ने दिया माल्यवान को पिशाच योनि का श्राप, तो ऐसे भगवान विष्णु ने की अपनी कृपा

Edited By Jyoti,Updated: 05 Feb, 2020 12:01 PM

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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादश तिथि भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी। जिस कारण इसको अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।

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हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादश तिथि भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी। जिस कारण इसको अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक साल में कुल 24 एकदशी पड़ती है। जिसमें से एक जया एकादशी है। जो साल 2020 में 05 फरवरी, बुधवार को मनाया जा रहा है। बता दें प्रत्येक वर्ष ये व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादश तिथि को मनाया जाता है। ग्रंथों में किए इसके उल्लेख के मुताबिक जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धापूर्वक इस व्रत का पालन करता है उसे ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिल जाती है।
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शास्त्रों में प्रत्येक एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा वर्णित है तो आइए जानते हैं जया एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा- 
धर्मराज युधिष्ठिर के अाग्रह करने पर श्री कृष्ण ने जया एकादशी का व्रत सुनाते हुए कहा 'जया एकादशी'का व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। आओ मैं तुम्हें पद्मपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूं। 

देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और बाकि सब देवगण स्वर्ग में निवास करते थे। एक समय की बात है इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन, उसकी स्त्री मालिनी तथा मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित था। 

पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। कहा जाता है पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी। इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान शुरू हो गया परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था। 

ठीक प्रकार न गाने एवं स्वर ताल ठीक न होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया। उन्होंने इसे अपना अपमान समझ कर उनके शाप दे दिया। इंद्र ने मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए मैं तुम्हारा धिक्कार करता है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगो। 
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इंद्र का शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए तथा हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। यहां उन्हें महान दु:ख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी। अत्यन्त शीत होने के कारण उनका जीवन व्यतीत करना और कठिन हो गया। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि आख़िर हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि को बर्दाश करना तो नर्क के दु:ख सहने से भी उत्तम है। अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। 

कहा जाता है कि तभी उस दौरान दैव्ययोग से माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। जिस दिन उन्होंने भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर अपना दिन व्यतीत किया। सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय भगवान सूर्य अस्त हो रहे थे। रात को अत्यन्त ठंड होने के कारण दोनों शीत से अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे पड़े रहे। उस रात्रि को उन्हें निद्रा भी नहीं आई।

माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के अवसर पर उपवास और रात्रि के जागरण के शुभ प्रभाव से अगले ही दिन प्रभात होते उनकी पिशाच योनि छूट गई। जिसके बाद उन्होंने अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो स्वर्गलोक को प्रस्थान किया।  आकाश में उस समय देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। जैसे ही इंद्र ने उनको अपने पहले रूप में देखा वो अत्यन्त आश्चर्यचकित हुए और पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया। 
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माल्यवान ने उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। 

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