साल भर के व्रतों में सबसे कठिन है ज्येष्ठ मास की ये एकादशी

Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2021 12:28 PM

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ज्येष्ठ मास में जल का अधिक महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि क्योंकि इस माह में गर्मी अपने चरम सीमा पर होती है इसलिए व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा जल का दान करना चाहिए

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
ज्येष्ठ मास में जल का अधिक महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि क्योंकि इस माह में गर्मी अपने चरम सीमा पर होती है इसलिए व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा जल का दान करना चाहिए तथा इसकी पूजा भी करनी चाहिए। इसी के मद्देनजर सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। जिसके नाम से ही ज्ञात होता है कि इस व्रत में व्यक्ति को जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करनी होती। वर्ष भर में यूं तो 24 एकादशियां आती हैं परंतु निर्जला एकादशी के दिन का सबसे अधिक महत्व है क्योंकि इस दिन ना ही व्यक्ति को अन का दाना खाना होता है ना ही जल की एक बूंद। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को काफी कठिन माना गया है जिसमें नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक होता है। यदि आप भी निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं या करने की सोच रहे हैं तो आपके लिए ही बेहद जरूरी है कि इससे जुड़े नियमों आदि को अच्छे से जान लें।

बता दें निर्जला एकादशी का व्रत किस पार 21 जून को मनाया जाएगा। 20 जून की शाम को 4:00 बजे स 1:30 बजे एकादशी तिथि का प्रारंभ हो जाएगा जो 21 जून दोपहर 1.30 बजे तक रहेगी। हालांकि इस का व्रत 21 जून को पूरे दिन रखा जाएगा जिसके बाद पारण 22 जून यानी इसके अगले दिन होगा।

आइए जानते हैं कि इस दौरान किन बातों का ख्याल रखा जाना है जरूरी-
अन्य एकादशी व्रत की तरह निर्जला एकादशी का व्रत भी भगवान विष्णु के नियमित ही किया जाता है। मान्यता है कि यह व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष प्रदान होता है तथा वह जन्म जन्म के बंधनों से मुक्ति पाता है। परंतु जितना यह व्रत लाभदायक माना जाता है उतना ही कठिन भी कहलाता है इसका कारण बिना जल ग्रहण किए रहना है। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहर में भक्तों के लिए बिना जल गए हम किए रहना किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं माना गया।

इसलिए इस व्रत को लेकर कुछ खास नियमों के बारे में बताया जाता है ताकि किसी तरह की गलती न हो और इससे पूरी लाभ प्राप्त किया जा सके।

इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करें। ध्यान रखें इस दिन ज्यादा देर तक नहीं सोना चाहिए।

घर के पूजा स्थल को अच्छे से साफ कर गंगाजल चड़के और भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर अपने व्रत का संकल्प करें।

अब एक आज ही व्रत की कथा पढ़े और श्रीहरि का स्मरण करें।

इस दौरान खास तौर से ध्यान रखें कि आप को पानी नहीं पीना है और ना ही उनका ग्रहण करना है।

पारण वाले दिन सुबह 8:00 बजे तक या मुहूर्त के अनुसार ही व्रत का पारण करें।

ध्यान रखें बिना नहाए धोए, विष्णु जी का पूजन करे बिना उव भोग लगाए बिना व्रत का पारण न करें।

अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मणों को दान ज़रूर दें। 

 
 

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