कैसे बनाएं दांपत्य जीवन को सुखद, इन उपायों से जानिए

Edited By Jyoti,Updated: 11 Jul, 2021 02:29 PM

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जीवन में धन-सम्पत्ति, मोटर-कार, बंगला, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, पत्नी और बच्चे होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन मधुर न हो तो ऐसा जीवन व्यर्थ है। इतना सब कुछ होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन में क्ले

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जीवन में धन-सम्पत्ति, मोटर-कार, बंगला, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, पत्नी और बच्चे होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन मधुर न हो तो ऐसा जीवन व्यर्थ है। इतना सब कुछ होते हुए भी यदि दाम्पत्य जीवन में क्लेश, घर में अशांति, तनाव भरा माहौल, पारिवारिक सदस्यों के बीच मतभेद और विवाद हों तो ऐसे जीवन को हम कदापि सफल नहीं कह सकते। इस आधुनिक युग की भाग-दौड़ में परेशान व्यक्ति क्या चाहता है? केवल कुछ पलों की शांति, जब वह घर में आए तो सभी परेशानियों को भूल जाए और अपने  पारिवारिक सदस्यों के बीच सुख का कुछ समय बिता सके। दुर्भाग्य की बात है कि यह संतोष सभी को नहीं मिलता। दाम्पत्य सुख में उत्पन्न हो रही बाधाओं को दूर करने के लिए जन्म कुंडली के ग्रह योगानुसार अशुभ ग्रह को शुभ बनाने के उपाय किए जा सकते हैं।

सामान्यत: जन्मकुंडली के सप्तम भाव से दांपत्य जीवन का विचार किया जाता है। यदि सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो दाम्पत्य सुख में बाधा आती है। नैसॢगक पापग्रहों में सूर्य, मंगल, शनि, राहू एवं केतू आते हैं।

सूर्य का प्रभाव सप्तम भाव पर होने पर जीवनसाथी से स्वाभिमान का टकराव होता है। फलस्वरूप पति-पत्नी के अलग-अलग रहने की स्थितियां बन जाती हैं। ऐसी स्थिति में यदि पति-पत्नी दोनों ही मुंह में पानी भर कर स्नान करें तो दोनों का सामंजस्य बैठने लगता है। ऐसे  जातकों को रविवार के दिन लाल वस्त्र पहनने से बचना चाहिए।

मंगल को दामपत्य सुख के लिए पीड़ादायक ग्रह माना जाता है क्योंकि मंगल की विवाह के भाव में युती अथवा दृष्टि के कारण विलम्ब, विवाह सम्पन्न होने में अवरोध एवं विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन में विवाद होते हैं। मंगल के दुष्प्रभाव के कारण पति-पत्नी में मारपीट एवं हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन नरकतुल्य हो जाता है। गले में चांदी की जंजीर अथवा हाथ में चांदी का ब्रेसलेट धारण किया जा सकता है। पति-पत्नी में से जिसका स्वभाव उग्र हो, उसे मिर्च एवं तीखी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि व्यक्ति मांसाहारी हो, तो उसे शाकाहारी बनना चाहिए।

सप्तम भाव पर शनि का दुष्प्रभाव होने पर विवाह में विलम्ब होता है। यदि शनि का अशुभ प्रभाव अधिक हो तो विवाह के बाद भी जीवनसाथी के प्रति उत्साह एवं उमंग की भावना नहीं होती। दाम्पत्य जीवन में परस्पर आकर्षण का अभाव होता है। इस कारण साथ रहते हुए भी पति-पत्नी पृथक रहने के समान जीवन व्यतीत करते हैं।

ऐसी स्थिति में शनि के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए व्यक्ति को मंगलवार के दिन नवीन लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। पति को लाल वस्त्र खरीद कर पत्नी को भेंट स्वरूप देना चाहिए।

सप्तम भाव पर राहू के दुष्प्रभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में अन्य व्यक्ति की दखल के कारण बाधाएं खड़ी होती हैं। ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन तब तक खराब रहता है जब तक कि वे अन्य व्यक्तियों के परामर्श के अनुसार कार्य करते रहते हैं।

यदि जातक नशीली वस्तुओं का सेवन करे तो उसका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं हो सकता। अत: ऐसे व्यक्ति की सर्वप्रमथ किसी भी प्रकार की नशीली एवं विषैली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए, जैसे-शराब, अफीम, चरस, धूम्रपान आदि। राहू का दुष्प्रभाव अधिक होने पर दाम्पत्य जीवन में गाली-गलौच, अपशब्द का प्रयोग होता है। पति-पपत्नी एक-दूसरे की निंदा एवं आलोचना करते हैं। अत: दाम्पत्य जीवन  को  सुखमय बनाने के लिए अपने जीवनसाथी की प्रशंसा करनी चाहिए। -पं. कमल राधाकृष्ण ‘श्रीमाली’

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