Kabir Das Jayanti 2023: जात-पात को त्याग आपसी प्रेम को बढ़ावा देती है ‘कबीर वाणी’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Jun, 2023 10:48 AM

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कबीर साहब का आविर्भाव वि.स. 1456 ईस्वी सन् 1398, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ। इस दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का

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Kabir Das Jayanti: कबीर साहब का आविर्भाव वि.स. 1456 ईस्वी सन् 1398, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ। इस दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौना करा के अपने घर लौट रहे थे कि रास्ते में नीमा को प्यास लगी और जब वह लहरतारा तालाब से पानी पीने ही लगी थीं कि वहां एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी जो कमल दल के गुच्छ पर विराजमान था। नीरू और नीमा इस बालक को घर ले गए जो बाद में सद्गुरू कबीर हुए।

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 जिस स्थान पर कबीर साहब पाए गए उसे प्रकट स्थली कहा जाता है और लहरतारा में प्रकट स्थली मंदिर बनाया गया। मूलगादी कबीर चौरा मठ सिद्ध पीठ काशी कबीर साहब की कर्म भूमि है। नीरू टीला जहां नीरू और नीमा रहते थे, वहीं कबीर साहब का लालन-पालन हुआ। माता-पिता की भांति ही कबीर साहब भी कपड़ा बुनने की कला में निपुण हो कर माता-पिता का हाथ बंटाने लगे परंतु उनका झुकाव परमार्थ की ओर था।

कबीर साहब विवेकशील तथा तीव्र बुद्धि वाले व्यक्ति थे जिनमें गूढ़ तत्वों को समझाने और उनकी गहराई में जाने तथा उनका विश्लेषण करने की असाधारण क्षमता थी।

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Kabir Das Jayanti Inspiring dohas:

अपनी वाणी द्वारा संसार को संदेश देते हुए वह कहते हैं-
सब धरती कागद करूं,
लेखनि सब बन राय।
सात समुंद की मसि करूं,
हरि गुण लिखा न जाए।।

भावार्थ: सब धरती को कागज, सम्पूर्ण वन वृक्षों को लेखनी और सात समुद्रों को स्याही बना कर भी यदि मैं श्री हरि के गुणों को लिखना आरम्भ करूं तो भी उन्हें लिखा नहीं जा सकता।

जात नहीं जगदीश की
हरिजन की कहां होये।
जात-पात के कीच में
डूब मरो मत कोय।
प्रभु की कोई जाति नहीं तो उसके भक्तों की क्या जाति हो सकती है।
एक जोति थैं सब उत्पनां
कौन बाम्हन कौन सूहा।

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भावार्थ: आत्मा की कोई जाति नहीं है सब जीव उस एक परम ज्योति से उत्पन्न हुए हैं। न कोई ऊंचा है न नीचा, न अच्छा है और न बुरा है। सद्गुरु कबीर की साखियां सारे संसार को आपसी भाईचारा प्रेम और जात-पात के बंधनों को छोड़ कर प्रभु भक्ति में लीन होने का संदेश देती हैं। कबीर साहब ने इस संसार को समझने और जानने के लिए ज्ञान का रास्ता बताया है। साखी के बिना हम अज्ञानता के अंधकार में डूबे रहते हैं। साखी हमारे जीवन की आंख है जो अज्ञानता को दूर करती है। अगर साखियों पर अमल किया जाए तो दुनिया में अज्ञानता मिट जाए और सभी झगड़े खत्म हो जाएं।

साखी आंखी ज्ञान की समझ देख मन माहि।
बिन साखी संसार का झगड़ा छुटत नाहि।।

भावार्थ: कबीर साहब भक्ति, प्रेम, ज्ञान और सदाचरण द्वारा ईश्वर को प्राप्त करने का संदेश देते हैं। इनका ज्ञान मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से दूर है। भक्त कवि और महान समाज सुधारक कबीर साहब ने अपना जीवन निर्गुण भक्ति में व्यतीत किया। उन्होंने समाज में फैले जात पात और अंधविश्वास का विरोध किया।

हिन्दू कहूं तो मैं नहीं
मुसलमान भी नाहि।
पांच तत्व का पूतला,
गैबी खेलै माहि।।
मैं न तो हिन्दू हूं और न मुसलमान। मैं तो ईश्वर द्वारा बनाया गया पांच तत्वों से बना पुतला हूं। वही अदृश्य पुरुष सब में खेल रहा है।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ
पंडित हुआ न कोय।
एकै अक्षर प्रेम का पढ़े,
सो पंडित होय।।
पोथी पढ़-पढ़ कर सारा जग मर गया पर पंडित कोई भी नहीं हुआ। जो प्रेम का एक अक्षर पढ़ लेता है वही पंडित होता है।
आवत गारी एक है,
उलटत होय अनेक।
कह कबीर नहि उलटिए,
वही एक ही एक।।

भावार्थ: यदि कोई व्यक्ति एक गाली देता है और सामने वाला व्यक्ति पलट कर गाली देता है तो वे गालियां एक न रह कर अनेक हो जाती हैं। कबीर साहब कहते हैं कि पलट कर गाली नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने से एक ही गाली रहती है, वह बढ़ती नहीं अर्थात पलट कर गाली न देने से झगड़ा नहीं बढ़ता।

जाको राखै साइयां,
मारि न सकै कोय।
बाल न बांका करि सकै,
जो जग बैरी होय।।

भावार्थ: जिसका रक्षक स्वयं ईश्वर है, उसे कोई नहीं मार सकता। भले ही सारा संसार उस ईश्वर भक्त का शत्रु हो जाए, तो भी कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

जाति न पूछो साधु की
पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का,
पड़ी रहने दो म्यान।।

भावार्थ: संत की पहचान उसकी जाति से नहीं उसके ज्ञान से करनी चाहिए। तलवार का मूल्य देखना चाहिए म्यान का नहीं। म्यान सोने की हो या चांदी की, उसका मूल्य नहीं होता, मूल्य तो तलवार का होता है।

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