कालाष्टमी पर क्यों की जाती है कुत्ते की पूजा ?

Edited By Lata,Updated: 26 Apr, 2019 03:37 PM

kala ashtami katha

हिंदू पंचांग के अनुसार कालाष्टमी का त्योहार हर महीने की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसलिए यह पर्व आज यानि 26 अप्रैल को मनाया जा रहा है।

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हिंदू पंचांग के अनुसार कालाष्टमी का त्योहार हर महीने की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इसलिए यह पर्व आज यानि 26 अप्रैल को मनाया जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार कालाष्टमी पर भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा की जाती है। कहते हैं कि वैशाख मास की कालाष्टमी  विशेष फलदायी होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भैरव के रूप में कुत्ते की पूजा होती है। लेकिन क्या किसी को इसके पीछे की वजह मालूम है। अगर नहीं तो चलिए जानते हैं इसके बारे में-
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शास्त्रों में काल भैरव का स्वरूप विकराल और क्रोधी बताया गया है। भैरव के एक हाथ में एक छड़ी होती है और उनका वाहन कुत्ता है। यही कारण है कि कालाष्टमी के दिन काले कुत्ते को भोजन करवाने का खास महत्व बताया गया है। कहते हैं कि जो भक्त पूरे विधि-विधान से भैरव की पूजा करते हैं उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में आ रही नकारात्मक शक्तियों की बाधा दूर होती है। आगे जानते हैं इसकी कथी के बारे में-
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पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच उनकी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। देवी-देवताओं के विचार-विमर्श के बाद जो निष्कर्ष निकला उससे विष्णु और शिव तो सहमत हो गए लेकिन ब्रह्मा जी खुश नहीं हुए। जिसके बाद उन्होंने शिव को अपमानित करने की भी कोशिश की जिससे भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए। कहते हैं कि भगवान शिव के इस भयंकर रूप से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। जिसे देखकर सभी देवी-देवता डर गए।
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कालभैरव जोकि काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में छड़ी लिए प्रकट हुए थे, उन्होंने ब्रह्मा जी के सिर को धर से अलग कर दिया। अब ब्रह्मा जी के पास केवल चार सिर ही बचे। उन्होंने क्षमा मांगकर काल भैरव के कोप से खुद को बचाया। ब्रह्मा जी के माफी मांगने पर भगवान शिव फिर से अपने रूप में आ गए लेकिन काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष चढ़ चुका था। जिससे छुटकारा पाने के लिए वे कई वर्षों तक भटकते हुए वाराणसी में पंहुचे, जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। 

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