कालाष्टमी 2019ः यहां जानें, काल भैरव व्रत कथा के बारे में

Edited By Lata,Updated: 23 Jun, 2019 01:44 PM

kalashtami vrat

कालाष्टमी का दिन भगवान भैरव की साधना व आराधना का दिन माना जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अष्टमी तिथि के दिन कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी।

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कालाष्टमी का दिन भगवान भैरव की साधना व आराधना का दिन माना जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अष्टमी तिथि के दिन कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी। इस बार कालाष्टमी 25 जून, 2019 मंगलवार को मनाई जाएगी। कहते हैं कि इस दिन कालभैरव की पूजा व व्रत करने से व्यक्ति की सारी मनोकामना पूरी होती है और वह अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। तो चलिए देर न करते हुए आज हम आपको इससे जुड़ी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
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कालभैरव के जन्म को लेकर पुराणों में एक बड़ी ही रोचक कथा प्रसिद्ध है। शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु में कौन सर्वश्रेष्ठ है, इस बात को लेकर वाद-विवाद हो गया। तब दोनों ने अपने आपको श्रेष्ठ बताया और आपस में एक-दूसरे से युद्ध करने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने वेद से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं। वेद के द्वारा भगवान शिव की महिमा ब्रह्माजी को पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद अत्यंत दु:खी हुए। उसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। तब ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ।
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ब्रह्माजी के इस आचरण पर भगवान शिव को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने उसी क्षण भैरव को प्रकट करते हुए कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को ही काट दिया। इस पूरी घटना के बाद भगवान शिव के कहने पर भैरव जी काशी को गए। जहां उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्ति किया। आज भी वाराणसी में भगवान भैरव काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। जिनका दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं। 

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