Edited By Jyoti,Updated: 02 May, 2021 02:45 PM
सनातन धर्म में ग्रंथों में अनेकों ही व्रत-त्यौहारों का वर्णन है। कहा जाता है ये इन्हीं पर्व के जरिए व्यक्ति अपने जीवन का कुछ समय भगवान को मसर्पित कर पाता है। 03 मई, 2021 दिन
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सनातन धर्म में ग्रंथों में अनेकों ही व्रत-त्यौहारों का वर्णन है। कहा जाता है ये इन्हीं पर्व के जरिए व्यक्ति अपने जीवन का कुछ समय भगवान को मसर्पित कर पाता है। 03 मई, 2021 दिन सोमवार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में पड़ने वाले अन्य त्यौहारों आदि की तरह इसका भी अधिक महत्व है। बता दें प्रत्येक मास के कृष्ण पक्षी की अष्टमी तिथि को यह व्रत संपन्न किया जाता है। धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार कालाष्टमी का पर्व भगवान शंकर के अंश अवतार काल भैरव को समर्पित है। इसलिए इस दिन काल भैरव भगवान की विधि वत पूजा की जाती है। कहा जाता है इनकी पूजा से जातक के जीवन में से सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
तो आइए आपको बताते हैं इस दिन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि तथा मंत्र व आरती आदि-
कालाष्टमी की व्रत तिथि
वैशाख मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि- 3 मई दिन सोमवार
कालाष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 3 मई, 2021 को 1 बजकर 39 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 4 मई,2021 को दोपहर 1 बजकर 10 मिनट पर
कालाष्टमी व्रत की पूजन विधि-
इस दिन व्रत रखने वाले जातक प्रातः जल्दी उठकर तमाम नित्यकर्म, स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा स्थल में विराजमान हों।
पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करें, व्रत का संकल्प लें और भैरव बाबा को उनके पसंद के अनुसार पुष्प अर्पित करें।
अब इनके समक्ष दीप प्रज्जवलित करें, चालीसा का पाठ करने के बाग आरती की गुणगान करें, भगवान कालभैरव को फल, मिठाई और गुड़ का भोग अर्पित करें।
कालाष्टमी व्रत मंत्र:
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
अन्य मंत्र:
ॐ -भयहरणं च भैरव:।
ॐ -कालभैरवाय नम:।
ॐ -ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ -भ्रं कालभैरवाय फट्।
श्री भैरव जी की आरती:
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे। चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।। बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।