Kamada Ekadashi Vrat katha: प्रेम में फंसा व्यक्ति बन गया राक्षस

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Apr, 2020 06:41 AM

kamada ekadashi vrat katha

एकादशी व्रत भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो जीव समस्त एकादशी व्रतों का पालन करता है वह धरती पर सभी सुख ऐश्वर्यों का स्वामी बनता है और

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Kamada Ekadashi Vrat  katha: एकादशी व्रत भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो जीव समस्त एकादशी व्रतों का पालन करता है वह धरती पर सभी सुख ऐश्वर्यों का स्वामी बनता है और मृत्यु के पश्चात बैकुण्ठ धाम को जाता है एवं सदा भगवान का प्रिय रहता है। समस्त एकादशी व्रतों का अपना-अपना महत्व और फल है।

आज कामदा एकादशी है। यह एकादशी व्रत प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि को किया जाता है। इस एकादशी का अर्थ है काम भावना से हुए पापों से मुक्ति प्राप्ति।

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कामदा एकादशी कथा: महाभारतकालीन समय में धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते है कि हे धर्मराज! ये प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठ से भी पुछा था और जो समाधान गुरु वशिष्ठ ने कहा वो मैं आपसे कहता हूं।

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प्राचीनकाल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नामक एक राजन राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे तथा रजा पुण्डरीक का दरबार किन्नरों व गंधर्वो से भरा रहता था, जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां नित्य ही गंधर्वों और किन्नर का गायन होता रहता था। भोगीपुर नगर में ललिता नामक रूपसी अप्सरा और उसका पति ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व का वास था। दोंनों के बीच अटूट प्रेम और आकर्षण और वे सदा एक दूसरे का ही स्मरण किया करते थे।

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एक दिन गन्धर्व 'ललित' दरबार में गायन कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगडने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा पुण्डरीक को बता दी। राजा को गन्धर्व ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा पुण्डरीक ने गन्धर्व ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती थी।

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कुछ समय पश्चात घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की 'कामदा एकादशी' व्रत करने का आदेश दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक 'कामदा एकादशी' का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।

 

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