लघु हरिद्वार: ब्यास नदी के गहरे पानी में दिखाई देती हैं पौड़िया

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Nov, 2021 01:18 PM

kandapatan laghu haridwar

भारत की संस्कृति अति प्राचीन है। यही कारण है कि हमारे देश में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। हमारी सांस्कृतिक विरासत आज भी समूचे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोए हुए है। इन्हीं धार्मिक आस्थाओं और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के

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kandapatan laghu haridwar: भारत की संस्कृति अति प्राचीन है। यही कारण है कि हमारे देश में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं।  हमारी सांस्कृतिक विरासत आज भी समूचे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोए हुए है। इन्हीं धार्मिक आस्थाओं और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के अनेक स्थान आज भी विद्यमान हैं जहां विशेष अवसरों पर धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।

एक ऐसा ही पावन स्थान मंडी जिले के अंतर्गत उपमंडल धर्मपुर तथा जोगिन्द्रनगर की सीमा पर स्थित धार्मिक आस्था का संगम स्थल लघु हरिद्वार कांडा पतन में है। ब्यास नदी के तट पर बसा यह संगम स्थल अति रमणीय है। जहां एक ओर सोन खड्ड का भव्य नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी ओर ब्यास नदी का।

इसी संगम के तट पर एक भव्य तथा विशाल मंदिर नीलकंठ महादेव का है। वहीं गंगा माता मंदिर, हनुमान शिला और एक महात्मा की प्रतिमा भी है। बताते हैं कि नीलकंठ महादेव के गर्भ गृह में स्वयंभू शिवलिंग है जो अति प्राचीन है।

यहां की पृष्ठभूमि के बारे में अनेक धार्मिक मान्यताएं एवं दंत कथाएं प्रचलित हैं जिनके अनुसार पांडवों ने अपने वनवास के दौरान लघु हरिद्वार कांडा पतन में, हरिद्वार का निर्माण किया था। पर यह निर्माण अधूरा ही छोड़ कर पांडव यहां से चल दिए जिसके पीछे यह राज था कि जब पांडव यहां हरिद्वार का निर्माण कर रहे थे तो उन्हें पास के गांव ह्योलग से एक महिला की धान कूटने की आवाज सुनाई दी। इस आवाज को सुनते ही पांडवों को सवेरा होने का आभास हुआ और वे इस निर्माण को अधूरा छोड़ कर चले गए।

कुछ भी हो पर पांडवों द्वारा कांडा पतन में हरिद्वार निर्माण के अनेक अवशेष इनके आगमन की गवाही देते हैं। बताते हैं कि पांडवों द्वारा हरिद्वार निर्माण के समय जो अढ़ाई पौड़िया बनाई गई थीं वे आज भी भाग्यशाली लोगों को ब्यास नदी के गहरे पानी में दिखाई देती हैं। इसी तरह भीम शिला, नागा थी आल की पहाड़ी पर बनी हरिद्वार के लिए प्रवेश द्वार, प्रौद्योगिकी आदि अनेक अवशेष हैं।

कहते हैं कि यहां से बहती ब्यास नदी को लोग जेठी गंगा के नाम से जानते हैं जिस कारण इस स्थान के प्रति लोगों की भारी आस्था है और हर धार्मिक अवसर पर आस्थावान लोग यहां आस्था की डुबकी लगाते हैं।

विशेषकर गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी के पावन अवसर पर पवित्र स्नान कर पुण्य लाभ कमाते हैं। बताते हैं कि गंगा दशहरा के दिन ब्यास नदी उफान में आकर नीलकंठ महादेव के चरणों को स्पर्श करती है। गंगा दशहरा तथा निर्जला एकादशी को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है जिसमें महिलाओं की तादाद सबसे अधिक होती है।

गंगा दशहरा से एक दिन पूर्व यहां नीलकंठ महादेव मंदिर कमेटी द्वारा रात्रि जागरण का आयोजन किया जाता है और श्रद्धालु लोग भंडारे का आयोजन भी करते हैं जबकि सोनखड्ड के ऊपर बने लक्ष्मण झूला से गुजरते हुए इस झूले में झूलते हुए भय मिश्रित आनंद मिलता है।

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