Kartik Mass 2020: इन नियमों का पालन न करने वाले को नहीं मिलता भगवान विष्णु का आशीर्वाद

Edited By Jyoti,Updated: 30 Oct, 2020 11:42 AM

kartik mass 2020

सनातन धर्म की बात करें तो 12 के 12 मास का अपना अलग महत्व है। सभी माह हिंदू धर्म के किसी न किसी देवी-देवता से संबंध रखता है। 01 नवंबर से इस वर्ष का कार्तिक मास आरंभ हो रहा है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सनातन धर्म की बात करें तो 12 के 12 मास का अपना अलग महत्व है। सभी माह हिंदू धर्म के किसी न किसी देवी-देवता से संबंध रखता है। 01 नवंबर से इस वर्ष का कार्तिक मास आरंभ हो रहा है। शास्त्रों में इस विष्णु भगवान को समर्पित इस मास को अधिक विशेष बताया गया है, साथ ही साथ ये देवी लक्ष्मी को भी अत्यंत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो इस महीने में जातक द्वारा व्रत और तप करने का अधिक महत्व होता है। तमाम धार्मिक शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि इस मास में मनुष्य को कई तरह के नियमों का पालन करना पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज अपने इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको उन्हीं नियमों में से कुछ प्रमुख नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्हें अगर कोई भी साधारण व्यक्ति अपनाता है तो उसे अपने जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है। 
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यहां जानें कौन से वो खास नियम- 
कार्तिक मास में सबसे अधिक महत्व दीपदान को दिया जाता है। कहा जाता है कि पुराणों में इस मास में दीपदान करने के बारे में स्वयं भगवान विष्णु ब्रह्मा जी को, ब्रह्मा जी ने नारद को तथा नारद मुनि ने महाराज पृथु को बताया था। ऐसा करने से जातक के जीवन में आने वाले तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि इस मास में नदियों या पोखर आदि में दीपदान करने का विशेष महत्व बताया जाता है। 

चूंकि भगवान विष्णु को तुलसी अधिक प्रिय है, इसलिए कार्तिक मास में जितनी हो सके तुलसी के पौधे की पूजा करना चाहिए। बताया जाता है इस दौरान तुलसी का दान करना भी काफी लाभदायक माना जाता है। 

सनातन धर्म के शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए। इससे मन में सात्विकता बनी रहती है। 
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नहाने के बाद अक्सर कई लोग शरीर पर तेल लगाते हैं, मगर कहा जाता है कार्तिक मास में शरीर पर तेल लगाना वर्जित होता है। इस मास में आने वाले नरक चतुर्दशी के दिन ही तेल लगाया जा सकता है। 

इस दौरान दालों का सेवन करना भी निषेध होता है। जैसे उड़द, उड़द, मूंग, मसूर, मटर और राई आदि। 

इस दौरान जितना संभव हो व्यक्ति को व्रत और तप करना चाहिए। परंतु इस दौरान इस बात का खास ध्यान रखें, कि ये सारे कार्य ब्रह्माचार्य का पालन करते हुए करें। जो व्यक्ति इस मास में अधिक संभोग आदि करता है उसे अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। 

क्योंकि ये मास तन और मन दोनों के संयम रखने का होता है, इसलिए इस दौरान किसी के निंदा नहीं करनी चाहिए। बल्कि जितना हो सके अपने मन को ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। 
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