Edited By Jyoti,Updated: 26 Nov, 2020 01:57 PM
जिस तरह सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक मह्तव है, ठीक उसी तरह इस में मास में आने वाली प्रत्येक तिथि को खासा महत्व प्रदान है। इन्हीं तिथियों में से एक है कार्तिक पूर्णिमा
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जिस तरह सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक मह्तव है, ठीक उसी तरह इस में मास में आने वाली प्रत्येक तिथि को खासा महत्व प्रदान है। इन्हीं तिथियों में से एक है कार्तिक पूर्णिमा, जिसका महत्व धार्मिक शास्त्रों में बाखूबी किया गया है। ज्योतिष शास्त्र में इससे जुड़ा जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार इस दिन गंगा स्नान, दान पुण्य आदि का अधिक महत्व होता है। मगर क्या आप जानते हैं इसके अलावा इस दिन का संबंध भगवान शिव से भी जुड़ा हुआ है? जी हां, एक ऐसी भी कथा है जो देवों के देव महादेव से संबंधित है। दरअसल कहा जाता है ये कथा भगवान शिव को त्रिपुरारी कहे जाने से जुड़ी हुई है यानि इन्हें त्रिपुरारी क्यों कहा जाने लगा, इसके कारण कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पूर्णिमा से जुड़ा हुआ है। चलिए जानते हैं क्या है ये पौराणिक कथा-
धार्मिक पुराणों में जो कथा वर्णित है उसके अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था, जिसके तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नाम के तीन पुत्र थे। जिनके पिता तारकासुर का वध भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी ने किया था। तीनों ही पुत्र अपने पिता की मौत से अत्यंत दुखी थे।
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ब्रहमा जी की घोर तपस्या की और आखिर में ब्रह्मा जो को प्रसन्न करने में सक्षम हो गए। जिसके बाद उन्होंने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, परंतु ब्रह्मदेव ने उन्हें इसके बदले में कोई अन्य वर मांगने को कहा। तीनों ने मिलका सोच-विचार करने के बाद तीनों ने ब्रह्मा जी से कहा कि वह तीन अलग नगरों का निर्माण करवाएं। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोलकर अंतर्ध्यान हो गए।
तीनों वरदान पाकर अत्यंतु प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण कर दिया। जिसमें से तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया।
तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। जिस कारण इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत होने लगे , और अपने व्यथा लेकर भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्रदेव की बात सुनकर भगवान शिव शंभू ने इन असुरों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। कथाओं में किए वर्णन के अनुसार इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनी। सूर्य व चंद्रमा से पहिए, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े, हिमालय से धनुष तथा शेषनाग प्रत्यंचा बने।
भगवान शिव स्वयं बाण बने और बाण की नोक बने अग्निदेव। और महादेव खुद ही इस दिव्य रथ पर सवार भी हुए। देवताओं से बनें इस रथ और तीनों भाईयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। ऐसा कहा जाता है इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। क्योंकि यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।