Edited By Jyoti,Updated: 29 Nov, 2020 05:24 PM
प्रत्येक वर्ष में आने वाली हर पूर्णिमा का अधिक महत्व माना जाता है। मगर बात अगर कार्तिक मास की हो तो इसका अधिक महत्व माना जाता है। जिससे जुड़ा कोई एक कारण नहीं बल्कि अनेक ही कारण बताए जाते हैं जैसे इस मास में आने वाली देवशयनी एकादशी
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प्रत्येक वर्ष में आने वाली हर पूर्णिमा का अधिक महत्व माना जाता है। मगर बात अगर कार्तिक मास की हो तो इसका अधिक महत्व माना जाता है। जिससे जुड़ा कोई एक कारण नहीं बल्कि अनेक ही कारण बताए जाते हैं जैसे इस मास में आने वाली देवशयनी एकादशी, तुलसी पूजा आदि इस मास को भगवान विष्णु के प्रिय बनाते हैं। अतः इस मास का प्रत्येक दिन अपने आप में महत्व रखता है। मगर हम यहां बात कर रहे हैं पूर्णिमा तिथि। इस दिन से संबंधित भी धार्मिक शास्त्रों में कई मान्यताएं व कथाएं वर्णित हैं। कहा जाता है पूर्णिमा की रात चंद्रदेव की पूजा-अर्चना करने के लिए अधिक लाभकारी होती है। मगर इनकी पूजा की सही विधि क्या है इस बारे में अच्छे से बहुत कम लोग जानते हैं तो चलिए आपको बता देते हैं कि आपको इस दौरान इनकी आराधना कैसे करें, साथ ही बताएंगे इस दिन इनके जपे जाने वाले कुछ खास मंत्रों के बारे में-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस जातक की कुंडली में चंद्र की स्थिति कमज़ोर होती है उसके द्वारा इस दिन किए गए खास उपाय, कुंडली में स्थिति को बेहतर करते हैं साथ ही साथ जातक के मन मस्तिष्क प्रदान होती है।
चंद्रदेव की पूजा विधि-
धार्मिक मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें जब धरती पर आने लगें तब उनसे जुड़े मंत्रों का जाप करना चाहिए। रात 11 बजे से लेकर रात 1 बजे के बीच गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करने के बाद खुले आसमान के नीचे कुश के आसान पर उत्तर की ओर मुखकर बैठकर सर्वप्रथम चंद्रदेव को धूप-दीप और पुष्प अर्पित कर प्रणाम करना चाहिए।
इसके बाज सफेद वस्त्र पहनकर चन्द्रमा का ध्यान करें तथातुलसी या कमल गट्टे की माला से मंत्र का जाप करें। जप पूरा होने के बाद चांदी के किसी बर्तन में शुद्ध जल या देसी गाय के दूध से चंद्रदेव को अर्घ्य दें और “ॐ चंद्राय नमः” का जाप करें। इससे जातक के सुख सौभाग्य में निरंतर वृद्धि होती रहती है।
इन मंत्रों का करें जाप-
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।
ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विद्महे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।