नवरात्रि के पांचवें दिन पढ़ें देवी स्कंदमाता की कथा

Edited By Lata,Updated: 03 Oct, 2019 09:32 AM

katha of maa skandmata

नवरात्रि के पावन पर्व की हर तरफ धूम मची हुई है। हर जगह पर मां के नाम के जयकारें सुनने को मिल रहे हैं।

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नवरात्रि के पावन पर्व की हर तरफ धूम मची हुई है। हर जगह पर मां के नाम के जयकारें सुनने को मिल रहे हैं। आज नवरात्रि का पांचवां दिन है और इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। कहते हैं कि इनकी आराधना करने से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। स्कंदमाता पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं हैं। 
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शास्त्रों के अनुसार स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता हैं और इसी कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

शास्त्रों में इसका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।
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उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।  

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