भारत पुकारता है बंसी बजाने वाले, कलियुग में भी खबर ले द्वापर में आने वाले

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Sep, 2019 08:45 AM

kesari natha singh

स्व. इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी के निर्वाण दिवस पर एक छोटी सी पेशकश इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी निर्दोष जी का जन्म 3 सितम्बर 1905 को जन्माष्टमी के दिन हुआ और यह बात और भी विचित्र है कि वह ब्रह्मलीन भी 3 सितम्बर को हुए। उन्होंने अपने...

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स्व. इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी के निर्वाण दिवस पर एक छोटी सी पेशकश

इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी निर्दोष जी का जन्म 3 सितम्बर 1905 को जन्माष्टमी के दिन हुआ और यह बात और भी विचित्र है कि वह ब्रह्मलीन भी 3 सितम्बर को हुए। उन्होंने अपने पूर्व जन्म के शुभ संस्कारों तथा गुरुजनों व सच्चे संतों की कृपा से बाल्यावस्था में ही भजन लिखने व बोलने शुरू कर दिए। उनके गीतों को सुनने के लिए कई बार श्रोता देर रात तक भी इंतजार करते रहते थे। ‘हिंद समाचार पत्र समूह’ के संस्थापक अमर शहीद लाला जगत नारायण जी के साथ भी उनका जीवन में विशेष संबंध रहा। लाला जी भी उनके भजनों से विशेष प्रभावित होते थे। लाला जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री रमेश चंद्र चोपड़ा जी के विवाह के समय सेहरा भी मास्टर नत्था सिंह जी ने गाया था।

मास्टर नत्था सिंह जी जब भी देश की दुर्दशा से चिंतित होते थे तो वह भगवान श्री कृष्ण जी को याद करते हुए भजन लिखते थे। इन भजनों में भारत पुकारता है बंसी बजाने वाले, कलियुग में भी खबर ले द्वापर में आने वाले, ‘आजा शाम सुंदर’ ‘बनवारी भारत देश दी दशा आन के वेख जरा इक वारी’, ‘लत्तों खिचदे इक दूजे नूं हट हुण मेरी वारी, देश किसे नूं नहीं प्यारा कुर्सी सब नूं प्यारी’, ‘खत लिखता हूं आजा तेरे नाम कृष्णा, तेरे देश में है खैरियत तमाम कृष्णा’, ‘तेरी दुनिया दे नक्शे आज होर हो गए, चोर जोरावर, साध कमजोर हो गए, गुंडागर्दी दा हो गया है राज कृष्णा’।

इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी ने लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए अनेकों गीत लिखे। उनके द्वारा लिखे गीत इतिहास व भजन आज भी उनकी यादों को ताजा रखे हुए हैं। इन गीतों में संभल कर कदम जिंदगी का उठाना, अजब है ये दुनिया, अजब है जमाना, सदियों से जीव भटकता पर चैन कभी न पाया, कई बार मरा जी जी कर फिर भी न जीना आया, जीवन खत्म हुआ तो जीने का ढंग आया, जब शमां बुझ गई तो महफिल में रंग आया, किसी दिन देख लेना तुझ को ऐसी नींद आएगी, तू सोया फिर न जागेगा तुझे दुनिया जगाएगी, जिस सूरत से तेरे घर वाले प्यार करते हैं वही सूरत तुझे भूत बनके डराएगी। इसलिए मास्टर जी ने अपनी लिखी महत्वपूर्ण पुस्तक जीवन पूंजी के शुरू में यही लिखा कि मत समझिए इसको पुस्तक, यह मेरी छाया है, जिंदगी में मैंने जो समझा वही आपको समझाया है।

इतिहास केसरी मास्टर नत्था सिंह जी ने अपने जीवन का अंतिम गीत 16 अगस्त 1972 को श्री प्रेम मंदिर अम्बाला शहर में श्री हरमिलाप मिशन के 11वें सतगुरुदेव श्री मुनि हरमिलापी जी महाराज की धर्म बहन सर्वव्यापी सतगुरु जीवन मुक्त जी महाराज को श्रद्धांजलि भेंट करते हुए गाया था। उसके बाद वह लुधियाना आए और ऐसे बीमार हुए कि 3 सितम्बर 1972 को हमेशा के लिए शारीरिक तौर पर संसार से विदा हो गए।


 

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