जम्मू-कश्मीर की वादियों में बसा है ये मंदिर, हज़ारों लोगों की आस्था का है केंद्र

Edited By Jyoti,Updated: 27 Sep, 2020 06:32 PM

kheer bhawani mandir

भारत देश में कई चमत्कारी व अनोखे मंदिर हैं जिनके चमत्कारों के बारे में वैज्ञानिक भी आज तक पता नहीं लगा पाए। इसी बीच आज हम आपको ऐसे मंदिर के दर्शन करवाएंगे

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भारत देश में कई चमत्कारी व अनोखे मंदिर हैं जिनके चमत्कारों के बारे में वैज्ञानिक भी आज तक पता नहीं लगा पाए। इसी बीच आज हम आपको ऐसे मंदिर के दर्शन करवाएंगे। जो प्राकृतिक आपदा का पहले संकेत देता है। ये मंदिर कश्मीर के गंदेरबल जिले में खीर भवानी और राज्ञा देवी मंदिर के नाम से स्थित है। मान्यताओं के मुताबिक यहां पर दुर्गा मां भव्य रूप में विराजित हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना कश्मीर में हनुमान जी ने की थी। मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पर जो भी श्रृद्धालु नंगे पांव चलकर आता है मां दुर्गा उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी करती हैं। पुरूष श्रद्धालु मंदिर के समीप जलधारा में स्नान करते हैं। उसके बाद वे मंदिर परिसर में स्थित जलकुण्ड में खीर चढ़ाते हैं। माना जाता है कि, मंदिर के नीचे बहने वाली जलधारा के पानी का रंग घाटी के कल्याण का संकेत देता है। अगर इसका जल काला होता है, तो ये अशुभ माना जाता है।
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कहते हैं कि किसी प्राकृतिक आपदा के आने से पहले मंदिर के कुंड का पानी काला पड़ जाता है। तो वहीं स्थानीय लोगों का ये भी मानना है कि खीर, जो सामान्य रूप से सफेद रंग की होती है उसका रंग काला हो जाता है। जो अप्रत्याशित विपत्ति का संकेत होता है। मई के महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त यहां एकत्रित होते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस शुभ दिन पर देवी पानी का रंग बदलती है। इस तरह स्थानीय लोगों को संकट की सूचना पहले ही मिल जाती है। लोग इसे माता का चमत्कार मानते हैं।

इसके अलावा आपको बता दें कि मंदिर में हर साल एक पारंपरिक मेला लगता है। जो की पारंपरिक श्रद्धा और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हर साल लगने वाले इस मेले को खीर भवानी मेला कहते हैं। यहां आऩे वाले श्रद्धालुओं धार्मिक मंत्रोच्चार के बीच मंदिर में घंटे बजाकर देवी के के दर्शन करते हैं।
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तो चलिए अब आपको मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बताते हैं-
ये रामाणय काल की बात है। पहले खीर भवानी माता का मंदिर श्रीलंका में था। यहां माता की स्थापना रावण ने की थी। रावण ने कड़ी साधना कर माता को प्रसन्न किया था और मंदिर बनाया था। हालांकि बाद में रावण के बुरे कार्यों से माता रुठ गईं थी। इसके बाद जब माता सीता की तलाश में हनुमानजी लंका पहुंचे तो माता ने उनसे कहा कि वे उन्हें अन्यत्र स्थापित करें। तब हनुमानजी ने माता को कश्मीर के तुलमुल गांव में स्थापित किया था। तब से ये मंदिर श्रीनगर से 14 किलोमीटर दूर गान्दरबल जिले में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो यहां की सुंदरता को बढ़ाती हैं। और इस मंदिर की ख़ासियत ये है कि यहां पर प्रसाद के रूप में भक्तों द्वारा केवल एक भारतीय मिठाई खीर और दूध ही चढ़ाया जाता है। वास्तविक रूप से 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा हिंदू देवी राग्न्य के सम्मान में बनवाए गए इस मंदिर का पुनर्निर्माण महाराजा हरि सिंग ने किया।
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