सम्राट अशोक ने मन की तपिश शांत करने हेतु अपनाया था ये मार्ग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Jul, 2022 11:00 AM

king ashoka story

अशोक की पीली धोती पर रक्त के छींटे पड़े। लम्बा शरीर, बलिष्ठ भुजाएं और चौड़े कंधे से धनुष बार-बार सरकता जा रहा था। कमर में बंधी तलवार सम्भल नहीं पा रही थी। जैसे किसी बोझ से शरीर झुका जा रहा था।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

King ashoka story: अशोक की पीली धोती पर रक्त के छींटे पड़े। लम्बा शरीर, बलिष्ठ भुजाएं और चौड़े कंधे से धनुष बार-बार सरकता जा रहा था। कमर में बंधी तलवार सम्भल नहीं पा रही थी। जैसे किसी बोझ से शरीर झुका जा रहा था। चमचमाते कंचन के आभूषणों पर खून के छींटे थे। अशोक घुटनों के बल बैठ गए, एकदम पस्त थे, थके हुए।  मगध नरेश अशोक कलिंग युद्ध जीत चुके थे, उनके अहंकार का घड़ा लबालब भर गया।  वह उठना चाहते थे, लेकिन खून के कीचड़ से सने पांव साथ नहीं दे रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे पांव अभी भी खूनी कीचड़ में धंस रहे थे। रणभूमि में पड़े धड़ से अलग हुए सिर अशोक से बार-बार सवाल कर रहे थे। ‘चंड अशोक!’  इस जीत को कहां रखोगे ?

PunjabKesari King ashoka story

कलिंग विजय के बाद भी खून से सनी धोती और तलवार से टपकती रक्त की बूंदें  ‘चंड अशोक’  को बार-बार विचलित कर रही थीं। कुछ दिन बाद अशोक ने देखा दो पुरुष मुंडे सर, पांव तक लम्बा चोगा पहने भिक्षाटन कर रहे हैं।  उन भिक्षुओं ने कहा, ‘‘हे सम्राट! तुम्हारे मन की तपिश को शांत करने का मार्ग है- ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धम्मम् शरणम् गछामि, संघम् शरणम् गछामि’।’’
अर्थात ‘बुद्ध की शरण में जाओ, धम्म की शरण में जाओ।’

लेकिन बुद्ध की शरण में कैसे जाया जा सकता है। ऐसा करना तो कठिन है, अशोक शरण में कैसे जाएंगे वह तो महानायक हैं। वह शरणागत कैसे हुए होंगे...।  वह तो बस उन भिक्षुओं के पीछे-पीछे चले होंगे। अशोक देखते हैं एक बोधि वृक्ष के नीचे एक ज्योति पुंज में लिपटा घुंघराले बालों वाला कंचन काया पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा है। उसकी आंखें अधखुली हैं। तभी एक आवाज गूंजती है, ‘‘अशोक !’’  एकबारगी अशोक थम-सा गया।  मन में उठ रही सारी तपन शांत हो गई। अब अशोक बुद्ध की शरण में आ चुके थे, धम्म की शरण में आ चुके थे यानी चंड अशोक, कलिंग विजेता सम्राट अशोक बुद्ध का शर्णात हो चुका था।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

PunjabKesari King ashoka story

बुद्ध ने कितने सुंदर धर्मचक्र का रेखांकन किया। चक्र घूमता है लेकिन चक्र का मूल स्थिर है जो ‘निर्वाण’ कहलाता है। इतिहास के पन्ने कहते हैं कि अशोक और बुद्ध का काल समान नहीं था। बुद्ध तो बिम्बिसार के काल के हैं। भले ही बुद्ध और अशोक में पीढ़ियों का अंतर रहा हो लेकिन बुद्ध को आत्मसात किया अशोक ने। तथागत बुद्ध के निर्वाण के बाद उनकी अस्थियों पर अधिकार को लेकर 16 महाजनपदों के राजाओं में युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। आनंद की सूझ-बूझ से यह टकराव टला और 18 स्थानों पर बुद्ध के अस्थि कलश पर स्तूप बने, लेकिन 18 स्तूपों से 84 हजार स्तूपों को भारत सहित ईरान में निर्मित करवा कर उनमें तथागत की अस्थियों को विराजमान करने का श्रेय अशोक को जाता है।

अशोक अब ‘चंड अशोक’ नहीं रहा। अब वह अहिंसा का पुजारी हो चुका था। वह मगध से चल कर मृगदाव (सारनाथ) आता है। यह वही स्थान है, जहां ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश उन 5 साथियों को दिया जो उनके साथ तपस्या करते थे। अशोक ने न केवल यहां धर्मराजिका स्तूप का बल्कि कई बौद्ध विहारों का भी निर्माण करवाया। सारनाथ वही स्थल है जहां मौर्य सम्राट अशोक ने सिंह शीर्ष स्तंभ स्थापित कर बौद्ध धर्म को चिर स्थायी रूप दिया।  

PunjabKesari ashoka

सारनाथ आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि अशोक के समय या उसके बाद के राजवंशों के समय में हुआ करता था। बेशक काल के अंतराल में सारनाथ में बने बोध विहार, स्तूप और मूर्तियों पर एक तरह से वक्त का पर्दा पड़ गया था, लेकिन धूल-धूसरित इस पर्दे के हटते ही सारनाथ का वैभव देवदिप्यमान है।

यहां न केवल धर्मराजिका स्तूप के अवशेष दिखते हैं वरन् धमेक स्तूप, बौद्ध विहारों के खंडहर और 4 सिंहों वाले अशोक स्तम्भ बुद्ध की थाती को समेटे आज भी ‘बुद्धम शरणम् गच्छामि, धम्मम् शरणम् गच्छामि’ का संदेश दे रहे हैं।  

PunjabKesari King ashoka story

 

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!