Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Feb, 2018 03:17 PM
हिंदू धर्म के अनुसार काशी को पौराणिक नगरी माना जाता है। यह विश्व के सबसे पुरानी नगरों में से एक मानी जाता है। यह नगरी विश्वभर में अपनी प्राचीनता के कारण अति प्रसिद्ध है। जगत्प्रसिद्ध यह प्राचीन नगरी गंगा के उत्तर तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी...
हिंदू धर्म के अनुसार काशी को पौराणिक नगरी माना जाता है। यह विश्व के सबसे पुरानी नगरों में से एक मानी जाता है। यह नगरी विश्वभर में अपनी प्राचीनता के कारण अति प्रसिद्ध है। जगत्प्रसिद्ध यह प्राचीन नगरी गंगा के उत्तर तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीचो बीच बसी हुई है। इस कारण ही हिंदू धर्म के लोगों के लिए यह नगरी आस्था का सबसे बड़ा व आकर्षक केंद्र है।
पुराणों अनुसार इस नगरी को स्वयं भगवान शंकर ने बनाया था, इस बारे में तो ज्यादातार लोगों ने सुना ही होगा। परंतु एक समय में श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से, जो उन्हें भगवान शंकर से ही वरदान के रूप में प्राप्त हुआ था। उस से सारी काशी नगरी को जलाकर राख कर दिया था। तो आईए आज हम आपको बताते है कि इसके पीछे द्वापर युग की एक प्रचलित पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में मगध पर राजा जरासंध का राज था। उसके आतंक के कारण उसकी समस्त प्रजा उससे डरा करती थी। राजा जरासंध की क्रूरता और असंख्य सेना कि वजह से आस-पास के सभी राजा-महाराजा भी खौफ में रहा करते थे। मगध के इस क्रूर राजा की दो बेटियां थीं। जिनका नाम अस्ति और प्रस्ति था। इन दोनों में से एक की शादी मथुरा के दुष्ट राजा से हुई थी और दूसरी की श्रीकृष्ण के मामा कंस से।
हम में से बहुत लोग यह जानते हैं कि राजा कंस को ये श्राप था कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही उसक मृत्यु का कारण बनेगी। इस वजह से ही राजा कंस ने बहन देवकी और उसके पति को बंदी बनाकर रख लिया था। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी वो देवकी की आठवीं संतान को जीवित रहने से नहीं रोक पाया। अपनी संतान को कंस से बचाने के लिए वासुदेव व देवकी न निर्णय करके अपना बच्चा यशोदा के घर में छोड़ दिया। माता यशोदा ने ही श्री कृष्ण का पालन पोषण किया।
जब श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर दिया तो इस बात की खबर मगध के राजा जरासंध तक जा पहंची। क्रोध में आकर उन्होंने श्री कृष्ण को मारने की योजना तक बना ली, लेकिन वो सफल न हो पाए। इसलिए जरासंध ने काशी के राजा के साथ मिलकर फिर से कृष्ण को मारने की योजना बनाई और कई बार मथुरा पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों में मथुरा और भगवान कृष्ण को कुछ नहीं हुआ लेकिन काशी नरेश की मृत्यु हो गई।
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए काशी नरेश के पुत्र ने काशी के रचयिता भगवान शंकर की कठोर तपस्या की और भगवान को प्रसन्न करके उनसे श्रीकृष्ण का वध करने का वरदान पाया। वर में काशी नरेश पुत्र को एक कृत्या बनाकर दी और कहा कि इसे जहां मारोगे वह स्थान नष्ट हो जाएगा, लेकिन शंकर जी ने एक बात और कही कि यह कृत्या किसी ब्राह्मण भक्त पर मत फेंकना। ऐसा करने से इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा।
काशी नरेश पुत्र ने श्रीकृष्ण पर द्वारका में यह कृत्या फेंका. लेकिन वह ये भूल गए कि श्रीकृष्ण खुद एक ब्राह्मण भक्त हैं. इसी वजह से यह कृत्या द्वारका से वापस होकर काशी गिरने के लिए लौट गई। इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र कृत्या के पीछे छोड़ दिया। काशी तक सुदर्शन चक्र ने कृत्या का पीछा किया और काशी पहुंचते ही उसे भस्म कर दिया। लेकिन सुदर्शन चक्र का वार अभी शांत नहीं हुआ इससे काशी नरेश के पुत्र के साथ-साथ पूरा काशी राख हो गई।