Kundli Tv- श्रीकृष्ण और द्रौपदी में था ये Connection

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Jul, 2018 03:48 PM

krishna and draupadi were in the connection

महाराज द्रुपद ने द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिए संतान प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहूति के समय यज्ञकुंड से मुकुट, कुंडल, कवच तथा धनुष धारण किए हुए एक कुमार प्रकट हुआ।

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महाराज द्रुपद ने द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिए संतान प्राप्ति के उद्देश्य से यज्ञ किया। यज्ञ की पूर्णाहूति के समय यज्ञकुंड से मुकुट, कुंडल, कवच तथा धनुष धारण किए हुए एक कुमार प्रकट हुआ।  इस कुमार का नाम धृष्टद्युम्र रखा गया। महाभारत के युद्ध में पांडव पक्ष का यही कुमार सेनापति रहा। यज्ञ कुंड से एक कुमारी भी प्रकट हुई। उसका वर्ण श्याम था तथा वह अत्यंत सुंदरी थीं। महाकाली ने क्षत्रिय के अंश रूप से उसमें प्रवेश किया था। उसका नाम कृष्णा रखा गया। द्रुपद की पुत्री होने से वह द्रौपदी भी कहलाई।

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एकचक्रा नगर में द्रौपदी के स्वयंवर की बात सुनकर पांडव पाञ्चाल पहुंचे। उन्होंने ब्राह्मणों का वेश बनाया था। वहां वे एक कुम्हार के घर ठहरे। स्वयंवर सभा में भी पांडव ब्राह्मणों के साथ ही बैठे। सभा भवन में ऊपर एक यंत्र था। यंत्र घूमता रहता था। उसके मध्य में एक मत्स्य बना था। नीचे कड़ाही में तेल रखा था। तेल में मत्स्य की छाया देखकर उसे पांच बाण मारने वाले से द्रौपदी के विवाह की घोषणा की गई थी। जरासंध, शिशुपाल और शल्य तो धनुष पर डोरी चढ़ाने के प्रयत्न में ही दूर जा गिरे। केवल कर्ण ने डोरी चढ़ाई। वह बाण मारने ही जा रहा था कि द्रौपदी ने पुकार कर कहा, ‘‘मैं सूतपुत्र का वरण नहीं करूंगी।’’ 

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अपमान से तिलमिलाकर कर्ण ने धनुष रख दिया। राजाओं के निराश हो जाने पर अर्जुन उठे। उन्हें ब्राह्मण जानकर ब्राह्मणों ने प्रसन्नता प्रकट की। धनुष चढ़ाकर अर्जुन ने मत्स्य-वेध कर दिया और द्रौपदी ने अर्जुन के गले में जयमाला डाल दी। कुछ राजाओं ने विरोध करना चाहा पर वे अर्जुन और भीम के सामने न टिक सके।

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श्रीकृष्ण ने पांडवों को पहचान लिया था। अत: उन्होंने राजाओं को समझा-बुझाकर शांत कर दिया। द्रौपदी को साथ लेकर अर्जुन कुंती के पास पहुंचे और बोले, ‘‘मां! हम भिक्षा लाए हैं।’’


‘पांचों भाई उसका उपयोग करो,’ बिना देखे ही कुंती ने कह दिया।


द्रौपदी को देखकर कुंती ने पश्चाताप करते हुए कहा, ‘‘मैंने कभी मिथ्याभाषण नहीं किया है। मेरे इस वचन ने मुझे धर्म संकट में डाल दिया है। बेटा! मुझे अधर्म से बचा लो।’’ 


भगवान व्यास ने द्रुपद से द्रौपदी के पूर्व जन्म का चरित्र बताकर द्रौपदी से पांचों भाइयों का विवाह करने की सलाह दी। इस प्रकार क्रमश: एक-एक दिन पांचों पांडवों ने द्रौपदी का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया।


श्रीकृष्ण की कृपा से युधिष्ठिर ने मयद्वारा निर्मित राजसभा प्राप्त की। दिग्विजय हुई और राजसूय यज्ञ करके वह चक्रवर्ती सम्राट बन गए। दुर्योधन ने मय के द्वारा निर्मित भवन की विशेषता के कारण जल को थल समझ लिया और उसमें गिर पड़ा। यह देखकर द्रौपदी हंस पड़ी। दुर्योधन ने इस अपमान का बदला लेने के लिए शकुनि की सलाह से महाराज युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया। सब कुछ हारने के बाद वह अपने भाइयों के साथ द्रौपदी को भी हार गए। 

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दुर्योधन के आदेश से दु:शासन द्रौपदी को रजस्वला अवस्था में उसके केशों से पकड़ कर घसीटता हुआ राजसभा में ले आया। पांडव मस्तक नीचे किए बैठे थे। द्रौपदी की करुण पुकार भी उनके असमर्थ हृदयों में जान नहीं डाल पाई। भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य जैसे गुरुजन भी इस अत्याचार को देखकर मौन रहे।


‘‘दु:शासन देखते क्या हो? इसका वस्त्र उतार लो और निर्वस्त्र करके यहां बैठा दो।’’ दुर्योधन ने कहा। 


दस सहस्र हाथियों के बल वाला दु:शासन द्रौपदी की साड़ी खींचने लगा।, ‘‘हे कृष्ण! हे द्वारकानाथ! दौड़ो! कौरवों के समुद्र में मेरी लज्जा डूब रही है। रक्षा करो।’’
द्रौपदी ने आर्त स्वर में भगवान को पुकारा।


फिर क्या था, दीनबंधु का वस्त्रावतार हो गया। अंत में दु:शासन थक कर चूर हो गया। चाहे दुर्वासा के आतिथ्य-सत्कार की समस्या रही हो, चाहे भीष्म की पांडव-वध की प्रतिज्ञा, श्रीकृष्ण प्रत्येक अवस्था में द्रौपदी की पुकार सुनकर उसका क्षण मात्र में समाधान कर देते थे। द्रौपदी श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है।


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