इस मंदिर में होती है श्वान की पूजा, नहीं रहता कुत्ते के काटने का भय (Pics)

Edited By ,Updated: 03 Jan, 2017 01:24 PM

kukurdev mandir

छतीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव नामक एक प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में श्वान की पूजा होती है। कहा जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में दर्शनों हेतु

छतीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव नामक एक प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में श्वान की पूजा होती है। कहा जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में दर्शनों हेतु आते हैं उन्हें खांसी से छुटकारा मिलता है अौर साथ ही कुत्ते के काटने का भय भी नहीं रहता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 14-15वीं शताब्दी में नागवंशी शासकों ने करवाया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में श्वान की प्रतिमा है। उसके बगल में एक शिवलिंग भी है। यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है। लोग शिव जी के साथ-साथ श्वान (कुकुरदेव) की वैसे ही पूजा करते हैं जैसे आम शिवमंदिरों में नंदी की पूजा होती है। माना जाता है कि कुकुरदेव के दर्शन करने से न खांसी होने का डर रहता है न कुत्ते के काटने का खतरा।

 

गुंबद के चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। मंदिर के चारों तरफ उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं जिन पर बंजारों की बस्ती, चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। यहां राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के अलावा भगवान गणेश की भी एक प्रतिमा स्थापित है। यहां महाशिवरात्रि और नवरात्रि पर मेला लगता है, जिसमें बालोद जिले के अलावा बाहर से लोग पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां नवरात्रि में लोग ज्योत भी जलाते हैं, जिनसे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर परिसर में दूसरे देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। 

 

कहा जाता है कि यहां पहले बंजारों की बस्ती थी। वस्ती में मालीघोरी नामक एक बंजारा रहता था। उसके पास एक पालतू कुत्ता था। गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो माली धोती ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया। लेकिन माली धोती साहूकार को कर्जा वापस नहीं कर पाया। ऐसे में उसने अपना वफादार कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख दिया। एक रात साहूकार के घर चोरी हो गई। सुबह हुई तो कुत्ता साहूकार की धोती मुंह में दबाकर खींचते हुए उसे वहां तक ले गया जहां चोरों ने चोरी का माल जमीन में गाड़ दिया था। गड्ढा खोदने पर साहूकार को सारा माल मिल गया। कुत्ते की वफादारी से खुश होकर साहूकार ने उसे आजाद कर देने का फैसला लिया। उसने माली धोती के नाम एक चिट्‌ठी लिखी और कुत्ते के गले में लटकाकर उसे उसके मालिक के पास जाने का इशारा किया। कुत्ता मालिक के पास पहुंचा तो वह नाराज हो गया। उसे लगा कि कुत्ता भागकर आया है। गुस्से में उसने अपने कुत्ते को पीट-पीट कर मार डाला। उसके बाद उसकी नजर कुत्ते के गले में लगी चिट्ठी पर पड़ी। साहूकार की चिट्ठी पढ़ने के बाद माली धोती को अपने किए का बहुत पछतावा हुआ। उसने उसी जगह कुत्ते को दफना दिया और उस पर स्मारक बनवा दिया। उसके बाद उसने वहां कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित कर दी। तब से ये स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
 

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