Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Jul, 2018 11:34 AM
शास्त्रानुसार चातुर्मास एवं चौमासे के दिनों में देवकार्य अधिक होते हैं जबकि हिन्दुओं के विवाह आदि उत्सव नहीं किए जाते। इन दिनों में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा दिवस तो मनाए जाते हैं परंतु नवमूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व नवनिर्माण आदि के कार्य नहीं किए जाते...
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शास्त्रानुसार चातुर्मास एवं चौमासे के दिनों में देवकार्य अधिक होते हैं जबकि हिन्दुओं के विवाह आदि उत्सव नहीं किए जाते। इन दिनों में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा दिवस तो मनाए जाते हैं परंतु नवमूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व नवनिर्माण आदि के कार्य नहीं किए जाते जबकि धार्मिक अनुष्ठान, श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ, श्री रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ, हवन यज्ञ आदि कार्य अधिक होते हैं, गायत्री मंत्र के पुरश्चरण व सभी व्रत सावन मास में सम्पन्न किए जाते हैं। सावन के महीने में मंदिरों में कीर्तन, भजन, जागरण आदि कार्यक्रम अधिक होते हैं।
चातुर्मास में क्या करें क्या न करें
श्रावण यानि सावन के महीने में साग एवं हरी सब्जियां, भादों में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दालें खाना वर्जित है। किसी की निंदा चुगली न करें तथा न ही किसी से धोखे से उसका कुछ हथियाना चाहिए। चातुर्मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। कांसे के बर्तन में कभी भोजन नहीं करना चाहिए। जो अपनी इन्द्रियों का दमन करता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता है।
शास्त्रानुसार जो भक्त कमल पुष्पों से भगवान विष्णु का पूजन करते हैं उन्हें तीनों लोकों और तीनों सनातन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पूजन एक साथ ही करने का फल प्राप्त होता है।
4 महीने ब्राह्मणों को दान आदि देने का अत्यधिक महत्व है। स्वर्ण अथवा पीले रंग की वस्तुओं का दान करने से पुण्यफल प्राप्त होता है। जब तक भगवान विष्णु शयन करते हैं, तब तक के चार महीनों में सभी को धर्म का पूरी तरह से आचरण करना चाहिए। ऐसा करने से जीव को परमगति प्राप्त होती है। रात्रि में भगवान विष्णु जी की महिमा का गुणगान करते हुए जागरण करना मंदिर में दीपदान करना अति उत्तम कर्म है।
प्रस्तुति- वीना जोशी, जालंधर
veenajoshi23@gmail.com
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