Kundli Tv- इस जगह आकर लोग मरना पसंद करते हैं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Sep, 2018 12:04 PM

kundli tv people like to die on this place

काशी भारत के ही नहीं संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक है। इसका प्राचीन नाम भी वाराणसी ही था, बीच में इसे बनारस के नाम से लोग जानने लगे। अब पुन: इसका नाम वाराणसी ही कर दिया गया है। यह नाम ‘वरुणा’ और

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video)

PunjabKesariकाशी भारत के ही नहीं संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक है। इसका प्राचीन नाम भी वाराणसी ही था, बीच में इसे बनारस के नाम से लोग जानने लगे। अब पुन: इसका नाम वाराणसी ही कर दिया गया है। यह नाम ‘वरुणा’ और ‘असी’ दो नदियों से मिल कर बना है। कहा जाता है कि यह नाम यहां के शासक काश के कारण हुआ जो मानव वंश परंपरा के सातवें राजा थे। काशी और कौशल राज्यों में ऐतिहासिक काल में बड़ी कशमकश चलती रही और अंत में काशी कौशल राज्य का अंत हो गया। बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि काशी उद्योग-धंधों तथा व्यापार का एक बड़ा केंद्र था।

PunjabKesari
उत्तर भारत के बड़े व्यापारिक मार्ग यहां से होकर गुजरते थे। बारीक मलमल और सुगंधित पदार्थ का निर्यात यहां से होता था जब कौशल की राजपुत्री का विवाह मगध शासक बिम्बसार से हुआ तो कौशल राज्य ने काशी की आय कन्या के दहेज में दे दी और कुछ समय बाद काशी का सारा राज्य मगध साम्राज्य में सम्मिलित हो गया। 
मराठों के समय में काशी के महत्व की ओर शासकों का ध्यान गया और यहां अनेक मंदिरों एवं घाटों का निर्माण तथा मुरम्मत हुई। वाराणसी के आधुनिक राजवंश ने भी काशी के तीर्थ स्थानों की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राज्य सरकार ने वाराणसी के घाटों का जीर्णोद्धार किया है।

PunjabKesari
वर्तमान काशी में दर्शनीय मंदिर विश्वनाथ अन्नपूर्णा, संकटमोचन, दुर्गा मंदिर, तुलसी मंदिर, विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मंदिर, आदि विश्वेश्वर, साक्षी विनायक, पांच रत्न आदि हैं।

PunjabKesari
कुंडों तथा वापियों में दुर्गा कुंड, पुष्कर कुंड, पिशाचमोचन, कपिलधारा, लोलार्क, मानसरोवर तथा मंदाकिनी उल्लेखनीय हैं। यहां घाटों की संख्या बहुत है। इनमें अस्सी, तुलसी, हरिश्चंद्र, अहिल्याबाई, दशाश्वमेध तथा मणिकर्णिका आदि विशेष प्रसिद्ध हैं।

PunjabKesari
मृत्यु वह भी मंगलसूचक, यह परस्पर भिन्न बात है। यह रहस्य सहसा सबकी समझ में नहीं आ सकता। जो लोग मोक्ष में विश्वास करते हैं और जो पुनर्जन्म में आस्था रखते हैं उनको ही यह रहस्य समझ में आ सकता है।

PunjabKesari
भारत में वाराणसी ही ऐसा स्थान है जहां मृत्यु भी मंगलकारी होती है। मृत्यु एक ऐसी घटना है जो निश्चित रूप में घटती है। जो जन्म लेता है, वह अवश्य ही मृत्यु का आलिंगन करता है और अवश्यम्भावी मृत्यु वाराणसी में मंगलकारिणी बन जाती है। श्रद्धालुजनों को विश्वास है कि वाराणसी पुरी में मरने वालों को अवश्य मोक्ष मिलता है।  शास्त्रवादियों का यह कहना है कि, ‘‘यदि जीव काशी में रह कर काशी में मरता है तो उसका मोक्ष जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि वाराणसी का निवासी मृत्यु के समय वाराणसी से अन्यंत्र अपने तन का त्याग करता है तो दूसरे जन्म में पुन: उस जीव को वाराणसी पुरी में जन्म लेना पड़ता है और उसकी मृत्यु भी वाराणसी पुरी में ही होती है और वाराणसी में मरने पर मोक्ष निश्चित ही है।

PunjabKesari
वाराणसी की विचित्रता 
शास्त्रों में यह कहा गया है कि वाराणसी पुरी शंकर जी के त्रिशूल पर बसी है। इतना ही नहीं वाराणसी में मरने वालों के लिए ‘उत्तरायण’ और ‘दक्षिणायन’ का भी विचार नहीं करना पड़ता। पवित्र और अपवित्र स्थान का भी निराकरण नहीं करना पड़ता। गंगा तट या गली में भी कोई भेद नहीं किया जाता। वाराणसी में जहां कहीं जीव अपना तन त्याग करता, वहां पर शंकर भगवान उसको अपना ‘तारक’ मंत्र देकर उसको मोक्ष का अधिकारी बना देते हैं। 


वाराणसी पुरी के तीन क्षेत्र (खंड) हैं। वाराणसी सम्पूर्ण रूप से चौथा खंड है। वाराणसी पुरी में मध्यमेश्वर में जो शिवलिंग हैं उसे केंद्र बिंदू मानकर यदि एक वृत्त बनाया जाए तो उतने क्षेत्र के मंडलाकार घेरे में, पूर्व में गंगा तट का भाग है। पश्चिम में पाशपाणी गणेश जी का मंदिर है। दक्षिण में अस्सी नदी है और उत्तर में वरुणा नदी है। वाराणसी के भीतर ही अविमुक्त नामक क्षेत्र है। विश्वनाथ मंदिर से दो सौ धनुष नापने पर चारों ओर अविमुक्त क्षेत्र का मंडलाकार क्षेत्र है। अविमुक्त क्षेत्र के भीतर ‘अंतर्गृह क्षेत्र’ है। 


अंतर्गृह क्षेत्र के चारों ओर की सीमा निम्र प्रकार से है। पश्चिम में गोकर्णेश्वर है। पूर्व में आधी गंगा है। उत्तर में भूतेश्वर और दक्षिण में ब्रह्मेश्वर महादेव हैं। कहीं-कहीं यह भी प्रमाण मिलता है कि अंतर्गृह से अन्य तीन क्षेत्रों में मरने पर प्राणी को शिव का सालोक्य, सानिध्य, सारूप्य मोक्ष को प्राप्त करके, तब विदेह मोक्ष अर्थात सायुज्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।


हिंदू इसीलिए मरने के पूर्व वाराणसी सेवन करते हैं। यह भी कहा जाता है कि वाराणसी पुरी में मरने वालों का कान (दक्षिण कर्ण) ऊपर उठ जाता है। इसका आधार यही है कि शिवजी जीव को मरते समय दक्षिण कान में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। वाराणसी पुरी में निवास का उतना महत्व नहीं जितना कि मरने का महत्व है। शायद यही कारण है कि प्रत्येक हिन्दू वाराणसी में मृत्यु का सौभाग्य चाहता है, लेकिन यह सौभाग्य भी हर किसी को नहीं मिल पाता।

अगर बढ़ानी है Sex Power तो करें ये उपाय ! (देखें Video)

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!