Kundli Tv- रात को यहां देवता-किन्नर करते हैं बादाम-अखरोट की दावतें!

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Jul, 2018 11:39 AM

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यूं तो पूरा उत्तराखंड ही देवलोक कहा जाता है। यहां के कण- कण में देवताओं का वास है। अनेकों सिद्ध पीठ हैं जहां हजारों श्रद्धालु-भक्त दूर-दूर से पूजन करने आते हैं। कुछ मात्र पर्यटन की भावना से आते हैं। कुछ स्थानों तक

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यूं तो पूरा उत्तराखंड ही देवलोक कहा जाता है। यहां के कण- कण में देवताओं का वास है। अनेकों सिद्ध पीठ हैं जहां हजारों श्रद्धालु-भक्त दूर-दूर से पूजन करने आते हैं। कुछ मात्र पर्यटन की भावना से आते हैं। कुछ स्थानों तक पहुंचना आसान है। वहां पक्की सड़कें हैं तथा मोटर से या जीप-कार से आसानी से पहुंचा जा सकता है लेकिन इसी उत्तराखंड में कुछ अति दुर्गम स्थल भी हैं जहां केवल  साहसी श्रद्धालु ही पहुंच पाते हैं। ऐसा ही एक स्थल है सीताबनी, जिला नैनीताल। यहां की यात्रा आत्मिक शांति देती है। प्रकृति के मनोरम दृश्यों को निकट से देखने का सौभाग्य मिलता है। लगभग 42 कि.मी. की बीहड़ वनों की यात्रा अमूल्य यादगार बन जाती है। घने जंगलों से गुजरते समय हर पल जंगली हाथियों, शेर, रीछ व अन्य वन्य प्राणियों का भय बना रहता है।  

सीताबनी जाने के लिए दो रास्ते हैं, नैनीताल जिले के रामनगर से घने जंगलों से होकर 33 कि. मी. का एक रास्ता घने जंगलों के बीच से गुजरता है। प्रकृति के मनोहारी दृश्य और जंगली जानवरों को निकट से देखने का शौक अगर आपको है तो इस रास्ते से अवश्य जाइए।

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दूसरा रास्ता रामनगर से काला ढूंगी की ओर पक्की सड़क पर 13 कि.मी. दूर बैल पड़ाव तक का है। वहां से पक्की सड़क जाती है 7 कि.मी. दूर पवलगढ़ तक, फिर पवलगढ़ से घने जंगल का रास्ता लगभग 10 कि.मी. तक आपको सीताबनी पहुंचा देता है। इस जंगल मार्ग पर भी आपको वन्य प्राणियों के मिलने की पूर्ण संभावना है।

सीताबनी में स्थित मां सीता के मंदिर में मां सीता की संगमरमर की प्रतिमा है लव-कुश को गोद में लिए। शायद ऐसी प्रतिमा अन्यत्र किसी मंदिर में नहीं हैं। मंदिर का निर्माण एवं अंदर गर्भगृह के ऊपर का अंदरूनी भाग स्पष्ट करता है कि मंदिर सैंकड़ों वर्ष पुराना है। मंदिर के बाहर झरना है जिसमें तीन पाइप लगा दिए गए हैं। इन पाइपों से लगातार निर्मल शीतल जल बहता रहता है।

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कहते हैं यहां महाभारतकालीन पांडवों ने भी कभी अज्ञातवास किया था। इस मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर ऊपर पहाड़ी पर है महर्षि वाल्मीकि का आश्रम जहां पैदल ही जाया जा सकता है। वहां भी पुराने शंख/यज्ञवेदी आदि हैं। 

जनश्रुति यह भी है कि इसी क्षेत्र में सीता माता धरती की कोख में समा गई थीं। वाल्मीकि आश्रम में जो दूवड़ा घास होती है, लोग उसका संबंध मां सीता के बालों से जोड़ते हैं। 

आधुनिक संचार सुविधाओं से दूर यह स्थल निश्चित ही मन को शांति प्रदान करता है। इस स्थल के बारे में अनेक किंवदंतियां जनमानस में प्रचलित हैं तथा रात को यहां  देवता/ किन्नर सशरीर आते हैं, बादाम-अखरोट की दावतें आदि होती हैं। 

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कुल मिलाकर आधुनिक संसार से दूर यह निश्चित ही सुरम्य स्थान है। इस स्थान पर क्या था, कब का स्थल है, यह तो शोध का विषय हो सकता है पर श्रद्धालुओं के लिए यह सिद्धपीठ है, प्रकृति प्रेमियों के लिए अविस्मरणीय स्थल।
 
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