Kundli Tv- भोले बाबा का वो कौन सा था राज़, जो श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया.....

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jul, 2018 04:36 PM

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विराट नगर के राजा सुर्कीत के पास लौहशांग नामक एक हाथी था। राजा ने कई युद्धों में इस पर सवार होकर विजय प्राप्त की थी। शैशव से ही लौहशांग को इस तरह प्रशिक्षित किया था कि वह युद्ध कला में बड़ा प्रवीण हो गया था।

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महासमर में गाण्डीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे। जिधर श्रीकृष्ण अपने रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी।  द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कौरव सेना भाग खड़ी हुई। इसी बीच अचानक महर्षि वेदव्यास जी स्वेच्छा से घूमते हुए अर्जुन के पास आ गए। 

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उन्हें देखकर जिज्ञासावश अर्जुन ने उनसे पूछा, ‘‘महर्षि! शत्रु सेना का संहार जब मैं अपने बाणों से कर रहा था उस समय मैंने देखा कि एक तेजस्वी महापुरुष हाथ में त्रिशूल लिए हमारे रथ के आगे-आगे चल रहे थे। सूर्य के समान तेजस्वी महापुरुष का पैर जमीन पर नहीं पड़ता था। त्रिशूल का प्रहार करते हुए भी वह उसे हाथ से कभी नहीं छोड़ते थे। उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों नए-नए त्रिशूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते थे। उन्होंने ही समस्त शत्रुओं को मार भगाया है किंतु लोग समझते हैं कि मैंने ही उन्हें मारा और भगाया है। भगवन्! मुझे बताइए वह महापुरुष कौन थे?’’

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कमंडलु और माला धारण किए हुए महर्षि वेदव्यास ने शांत भाव से उत्तर दिया, ‘‘वीरवर! प्रजापतियों में प्रथम, तेज:स्वरूप, अंतर्यामी तथा सर्वसमर्थ भगवान शंकर के अतिरिक्त उस रोमांचकारी घोर संग्राम में अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य आदि के रहते हुए कौरव सेना का विनाश दूसरा कौन कर सकता था। तुमने उन्हीं भुवनेश्वर के दर्शन किए हैं। उनके मस्तक पर जटाजूट तथा शरीर पर वल्कल वस्त्र शोभा देता है। भगवान चंद्रमा को मुकुट रूप से धारण करते हैं। साक्षात भगवान शंकर ही वह तेजस्वी महापुरुष हैं जो कृपा करके तुम्हारे आगे-आगे चला करते हैं जिनके हाथों में त्रिशूल, ढाल, तलवार और पिनाक आदि शस्त्र शोभा पाते हैं, उन शरणागतवत्सल भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए।’’

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एक बार ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करके तीन असुर-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली आकाश में विमान के रूप में नगर बसाकर रहने लगे। घमंड में फूलकर ये भयंकर दैत्य तीनों लोकों को कष्ट पहुंचाने लगे। देवराज इंद्रादि उनका नाश करने में सफल न हो पाए। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने उन तीनों असुरों को भस्म कर दिया। वीरवर अर्जुन! उनका भोलापन सुनो, ‘‘जिस समय दैत्यों के नगरों को महादेव जी भस्म कर रहे थे, उस समय पार्वती जी भी कौतूहलवश देखने के लिए वहां आईं। उनकी गोद में एक बालक था। वह देवताओं से पूछने लगीं, ‘‘पहचानो यह कौन हैं?’’

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इस प्रश्र से इंद्र के हृदय में असूया की आग जल उठी और उन्होंने जैसे ही उस बालक पर वज्र का प्रहार करना चाहा, तत्क्षण उस बालक ने हंस कर उन्हें स्तम्भित कर दिया। उनकी वज्र सहित उठी हुई बांह ज्यों की त्यों रह गई। अब क्या था, बांह उसी तरह ऊपर उठाए हुए इंद्र दौडऩे लगे। अमरावती-विहार करने वाले इंद्र अब तो महान कष्ट से पीड़ित होकर ब्रह्मा जी की शरण में गए। ब्रह्मा जी को दया आ गई। वह इंद्र को लेकर शंकर जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी शंकर जी को प्रणाम करके बोले, ‘‘भगवन्! आप ही विश्व को सहारा तथा सबको शरण देने वाले हैं, भूत और भविष्य के स्वामी जगदीश्वर! ये इंद्र आपके क्रोध से पीड़ित हैं, इन पर कृपा कीजिए।’’


सर्वात्मा महेश्वर प्रसन्न हो गए। देवताओं पर कृपा करने के लिए वह ठठाकर हंस पड़े। सबने जान लिया कि पार्वती जी की गोद में चराचर जगत के स्वामी भगवान शंकर जी ही थे। वह सभी मनुष्यों  का कल्याण चाहते हैं, इसलिए उन्हें शिव कहते हैं। वेद, वेदाङ्ग, पुराण तथा अध्यात्म शास्त्रों में जो परम रहस्य है वह भगवान महेश्वर ही हैं। अर्जुन यह है महादेव जी की महिमा।

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