Lala Jagat Narayan: क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे लाला जी, आजादी की हर लड़ाई में रहता था उनका योगदान

Edited By Prachi Sharma,Updated: 05 Aug, 2024 09:21 AM

lala jagat narayan

गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण जगत नारायण अहिंसावाद के प्रबल समर्थक थे, परन्तु शहीद भगत सिंह ग्रुप के क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क रहता था। आजादी

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Lala Jagat Narayan: गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण जगत नारायण अहिंसावाद के प्रबल समर्थक थे, परन्तु शहीद भगत सिंह ग्रुप के क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क रहता था। आजादी की लड़ाई में जुड़ी प्रत्येक घटना में जगत नारायण गहरी रुचि रखते थे।

क्रांतिकारियों का रास्ता हिंसात्मक था। क्रांतिकारियों से उनका सैद्धांतिक मतभेद था क्योंकि वे हिंसा के विरोधी थे, परन्तु लक्ष्य एक ही था- भारत की स्वतंत्रता तथा ब्रिटिश सरकार से संघर्ष। कई बार वे उनकी सभाओं में भाग लेने भी चले जाया करते थे ताकि जान सकें कि आखिर उनके मन में क्या है ? भगत सिंह व उनके अन्य साथियों से अपने सम्पर्क व संबंध को याद करते हुए जगत नारायण ने एक स्थान पर लिखा -

‘‘इन नौजवानों ने नौजवान भारत सभा का गठन किया था। इनका उद्देश्य था देश की स्वतंत्रता। रास्ता चाहे हिंसक ही क्यों न हो। ये युवक महात्मा गांधी के अहिंसात्मक संघर्ष में विश्वास नहीं रखते थे। मैं उनकी सभाओं में भी जाता। उनके भाषण भी सुनता। मोरी गेट पर ही सभाएं होती थीं, चाहे कांग्रेस की हों, चाहे हिन्दू महासभा की हों या फिर नौजवान भारत सभा की।’’

PunjabKesari Lala Jagat Narayan

जगत नारायण को इन युवकों से सहानुभूति भी थी। उनकी प्रैस इन युवकों के लिए शरण स्थली थी। विचारधारा में नीतिगत अंतर होते हुए भी वे इनकी राष्ट्रीय भावनाओं की कद्र करते थे। यह उनके इस कथन से स्पष्ट भी हो जाता है -

‘‘ये नौजवान मेरे बहुत निकट थे तथा मेरे परिवार से भी परिचित थे। वे प्राय: प्रैस पर आया करते। प्रैस की स्थिति व बनावट कुछ ऐसी थी कि यह तीन ओर से खुली थी। दस-बारह दरवाजे थे। जब पुलिस या सी.आई.डी. वाले इनका पीछा कर रहे होते तो ये नौजवान प्रैस के कमरे में बैठ जाते। पुलिस वाले सड़क की दूसरी ओर से इन पर निगरानी रखते। जब कभी किसी नौजवान ने पुलिस को चकमा देना होता, वह प्रैस के पिछले गेट से निकल जाता। घंटों बाहर रह कर अपना काम करने के बाद फिर उसी गेट से प्रैस में आकर बैठ जाता या पुलिस को धोखा देकर निकल जाता।’’

इस प्रकार ‘विरजानंद प्रैस’ एक ऐसा केंद्र बिंदू बन गया था, जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की विभिन्न गतिविधियों से जुड़ा हुआ था। व्यक्तिगत स्तर पर जगत नारायण इन क्रांतिकारियों से भावनात्मक रूप से जुड़े रहे। उनके विचार में आम जनता की सहानुभूति इन क्रांतिकारियों के प्रति थी। व्यक्तिगत रूप से वे भगत सिंह के साहस व राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना से अत्यंत प्रभावित थे।

1931 में जब ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी लगा दी, तो लाला जी का मन भी देशवासियों के साथ तड़प उठा। वे उस समय लाहौर सिटी कांग्रेस कमेटी के प्रधान थे। जब उन्हें यह दुखद समाचार मिला तो वे रातों-रात कार लेकर सतलुज नदी के किनारे उस स्थान पर पहुंचे, जहां इन तीनों शहीदों की लाशों को जलाया गया था।  जिला कांग्रेस कमेटी के अन्य सदस्यों के साथ वे इन शहीदों की अस्थियों व राख को वहां से लेकर आए। उनका मन क्षोभ भरी पीड़ा से तथा अपनी विवशता पर ग्लानि से भर उठा।

यह काल उनके राजनीतिक जीवन में बहुत पीड़ादायक रहा। वे दुविधा की मन:स्थिति का शिकार रहे। आर्य समाज व गांधीवाद के प्रभाव के कारण वे हिंसा का समर्थन तो नहीं कर सकते थे, परन्तु इन क्रांतिकारियों के प्रखर राष्ट्रवाद के आगे वे भी नतमस्तक थे परन्तु उन्हें विश्वास था कि लाला लाजपत राय व इन शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा तथा ब्रिटिश साम्राज्य का सितारा जल्दी ही डूब जाएगा।

PunjabKesari Lala Jagat Narayan

लाला जी और सुभाष चंद्र बोस
आजाद हिन्द फौज के निर्माता, जय हिन्द के उद्घोषक, महान राष्ट्र नायक व युवा हृदय सम्राट, नेता जी सुभाष चंद्र बोस के सम्पर्क में आने का सौभाग्य जगत नारायण को उन दिनों मिला जब 1929 में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। अपने एक संस्मरण में जगत नारायण ने लिखा-

‘‘उस अधिवेशन के दौरान नेता जी सुभाष चंद्र बोस हमारी प्रैस पर आए। उनका भाषण हमारी प्रैस से ही छपा था। वे प्रैस में ही बैठे रहे तथा अपने भाषण की प्रूफ रीडिंग स्वयं की... यदि मुझे ठीक से याद है तो नेता जी ने यूथ कांग्रेस की एक सभा को भी संबोधित किया था तथा युवा गतिविधियों को प्रेरित करने के लिए उन्होंने 9 अक्तूबर, 1929 को लाहौर के ब्रैडला हाल में आयोजित पंजाब विद्यार्थी सम्मेलन की अध्यक्षता भी की थी।’’

नेता जी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के अनेकों गुण व विशिष्टताएं जगत नारायण में भी मिल जाती हैं। दोनों में ही राष्ट्र भक्ति की भावना तथा राष्ट्र गौरव का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ था। दोनों ने ही कांग्रेस पार्टी के संगठन में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य भी किया। दोनों के कांग्रेस से सैद्धांतिक मतभेद हुए। मोहभंग की स्थिति आई तथा परिणामस्वरूप कांग्रेस को दोनों ने ही समय आने पर छोड़ दिया। दोनों ने अपना बलिदान राष्ट्र के लिए दिया। दोनों में ‘अतिथि देवो भव:’ का भाव था। मेहमानों के आदर-सत्कार के लिए दोनों सदैव तत्पर रहते थे। दोनों ही निडर व बेधड़क थे।

अपनी बात को बड़ी स्पष्टता से, विश्वास से तथा तर्कपूर्ण ढंग से मनवाते थे। दोनों का साहस अदम्य था। नेता जी हिटलर या गांधी के सामने भी अपनी बात कहने में नहीं झिझके। जगत नारायण में भी लाला लाजपत राय, पं. जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री भीमसेन सच्चर, शेख अब्दुल्ला, स. प्रकाश सिंह कैरों आदि के सामने सच को सच कहने का साहस था।

PunjabKesari Lala Jagat Narayan

नेता जी भी अपनी विदेश यात्रा में अफगानिस्तान होते हुए काबुल में ठहरते हुए रूस गए थे तथा लाला जगत नारायण भी रूस यात्रा में अफगानिस्तान होते हुए रूस पहुंचे थे। दोनों ही भारत माता की बलिदानी संतान थे।
 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!