Edited By Jyoti,Updated: 08 Mar, 2019 12:35 PM
हर साल 8 मार्च को पूरे देश में वुमन डे यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है।
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हर साल 8 मार्च को पूरे देश में वुमन डे यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। बता दें कि विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार को प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सबसे पहला महिला दिवस, न्यूयॉर्क शहर में 1909 में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया था। आप में से बहुत से लोग इन बातों के बार में तो जानते होंगे लेकिन क्या आपको बता पता है कि हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार होली नारी सशक्तिकरण को दर्शाता है। जी हां, आप शायद इस बात पर यकीन नहीं करेंगे लेकिन होली का त्यौहार कहीं न कहीं महिला के सशक्तिकरण को दर्शाता है।
बरसाने की लठमार होली के बारे में कौन नहीं जानता होगा। भारत देश के साथ-साथ अन्य देशों में भी ये काफी प्रचलित है। कहा जाता है ये पर्व न सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रतीक है बल्कि नारी शक्तिकरण को भी दर्शाता है। आइए जानते हैं इस से जुड़ी कुछ खास बातें-
इतिहास के अनुसार 550 वर्ष पूर्व मुस्लिम शासकों के आतंक से परेशान ब्रजबालाओं को आत्मरक्षा के लिए ब्रजाचार्य नारायणभट्ट ने लाठी उठाने को कहा था। लठामार होली के बहाने महिलाओं ने कृष्णकालीन हथियार (लाठी) उठाकर अपने सम्मान की रक्षा की तैयारियां शुरू कर दीं। नारायण भट्ट की प्रेरणा से ब्रजनारियों ने हाथों में लाठियां तो उठा लीं लेकिन प्रहार किस पर करें यह यक्ष प्रश्न था। इसका भी समाधान निकाला गया कि लठ प्रहार अपने निकटस्थ पर ही किया जाए, क्योंकि अगर अपनों पर भी प्रहार करने में दक्षता हासिल हो गई तो दुश्मन पर प्रहार करना बेहद आसान होगा।
लठमार होली को लेकर एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि द्वापर युग में जब बरसाना में कान्हा को राधा और राधा की अन्य सखियों के साथ होली खेलते-खेलते देर शाम हो जाती थी तो वे उन्हें पुष्पों से सुसज्जित छड़ियों से भगाती थीं। कान्हा और उनके सखा उन छड़ियों के प्रहार को कनक (सोना) पिचकारियों से रोकते थे। यहीं पुष्प सुसज्जित छड़ियां कालांतर में लाठियों में और कनक पिचकारी ढालों में तब्दील हो गईं।
बताया जाता है कि नंदगांव बरसाना की परंपरागत लठामार होली महिला सशक्तिकरण का अद्वितीय उदाहरण है। ब्रज में तमाम प्रकार की होली का चलन है। परंतु कनक पिचकारियों से शुरू हुई होली आज लठामार होली के रूप में पूरे जग में विख्यात है।
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