ज्योतिष से जानें, बेटी होगी या बेटा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Jan, 2019 04:12 PM

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भारतीय ज्योतिष की अपनी एक विशेषता है, ये किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर बता सकता है कि संतान का कैसा योग बनेगा। सूर्य, मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं, शुक्र, चंद्र स्त्री ग्रह हैं, बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं। संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा...

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PunjabKesariभारतीय ज्योतिष की अपनी एक विशेषता है, ये किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर बता सकता है कि संतान का कैसा योग बनेगा। सूर्य, मंगल, गुरु पुरुष ग्रह हैं, शुक्र, चंद्र स्त्री ग्रह हैं, बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं। संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है। शनि और बुध योग कारक होकर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हों तो पुत्री प्रदान करते हैं। सप्तमेश पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या संतान का सुख मिलता है, गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदू दायक हो तो पुत्र, स्त्री ग्रह बिंदू दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है।

PunjabKesariपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है, पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या संतान की प्रधानता रहती है। पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है, जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त, नीच-शत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी।

PunjabKesariकई बार शारीरिक तौर पर सब ठीक होते हुए भी संतान होने में देरी चिंता का कारण बनती है। ऐसी स्थिति में संतान बाधा के कारणों के निवारण के लिए सबसे पहले पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतान उत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए। फिर शांति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है।

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शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें, पुरुष व स्त्री जिसकी अधिकता होती हो उसे किसी कुशल चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। सूर्यादि ग्रह नीच, शत्रु आदि राशि नवांश में पाप युक्त दृष्ट, अस्त, त्रिक भावों का स्वामी होकर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है। योग कारक ग्रह की पूजा, दान, हवन आदि से शांति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और संतति सुख प्राप्त होता है।

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‘फल दीपिका’ के अनुसार जन्म कुंडली से यह पता लग जाता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतानहीनता है, बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप, दान, हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र/ पुत्री की प्राप्ति होती है। 

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