कबीर साहब से जानें, जीवों में अशांति व दुख का कारण क्या है

Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Feb, 2018 02:52 PM

learn from kabir sahib

कबीर साहब ने अपने जीवन में भारत और पड़ोसी देशों की यात्राएं कई बार की थीं। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में लगातार यात्रा करते रहे। यात्राओं के दौरान ही भक्ति आंदोलन फैला जो

कबीर साहब ने अपने जीवन में भारत और पड़ोसी देशों की यात्राएं कई बार की थीं। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों दिशाओं में लगातार यात्रा करते रहे। यात्राओं के दौरान ही भक्ति आंदोलन फैला जो लोकप्रिय व व्यापक साबित हुआ। यहां कबीर साहब की इस प्रसिद्ध साखी की चर्चा करना आवश्यक है। भक्ति द्राविड़ उपजी, लाये रामानंद परगट करी कबीर ने, सात द्वीप नौ खंड।

 

भक्ति आंदोलन जन-जन तक फैल गया और लोग जो धर्म और शिक्षा के अधिकारों से वंचित थे वे मिलने लगे। कबीर साहब ने कहा कि मुक्ति पाने के लिए गुफाओं और जंगलों में जाने की आवश्यकता नहीं बल्कि अपने पेशे का काम करते हुए पारिवारिक जीवन जीते हुए मुक्ति पा सकते हैं और धर्म की राह पर चल कर सुख प्राप्त कर सकते हैं। कबीर साहब ने देश-विदेश गांव नगर की यात्रा करके जीवों को चेताने का काम किया। वह चाहते थे कि लोग सत्य के मार्ग पर चल पड़ें पर सत्य का मार्ग लोगों को ज्यादातर पसंद नहीं आता। सत्य के मार्ग पर चलना कांटों की सेज है और मुश्किल है इसलिए कबीर साहब ने दोहे में बताया देश-विदेसे हौं फिरा, गांव-गांव की खोरि। ऐसा जियरा ना मिला, लेवों फटक पछोरि।।


ऊपर दी गई साखी से पता चलता है कि कबीर साहब ने कई बार भारत और विदेशों की यात्रा की होगी। लोगों को चेताने और उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए अथक प्रयास किए जिनके अंदर समझदारी और ज्ञान का उजाला था वे सत्य के मार्ग पर चल पड़े और शेष छूट गए।  


कबीर साहब ने मन की पवित्रता पर जोर दिया और कहां मन की सात्विकता से आदमी से कर्म पवित्र हो जाते हैं और तब वे जहां जाएंगे उसकी परिक्रमा तीर्थ के समान होगी। इससे सहज मार्ग भला और क्या हो सकता है। मन की पवित्रता ही साधना की मंजिल है। मन की पवित्रता से चित्त की शुद्धि होती है। परमात्मा का अनुपम रूप तब आत्मानुभूति के रूप में हमेशा आपके अंदर विराजमान रहेगा।


कबीर जी की गुरबाणी किसी विशेष समुदाय व जात के लिए नहीं बल्कि सारे विश्व समाज के लिए है। इसलिए कबीर जी की बाणी को सारे संसार में कई देशों में पढ़ा और पढ़ाया जाता है और लोग बाणी को अपनाते हैं ताकि भवसागर से पार उतारा कर सके। कबीर साहब ने जात-पात व झूठे रीति-रिवाजों को, जो जगत में प्रचलित हैं, खोखला बताया और इन सभी की आलोचना की। दुनिया में आज भी कबीर जी की वाणी को स्वीकृति है और कबीर जी की पूजा और इनकी बाणी की पूजा करते हैं। इनकी बाणी में सारे संसार को एक ही संदेश दिया है कि आपसी प्रेम व भाईचारा हमेशा ही बनाए रखें। इन्होंने इंसानियत और मानवता की सेवा करना ही बड़ा धर्म बताया और कहा कि ईर्ष्या तथा जलन को हमेशा दूर रखें।


कबीर साहब ने अपनी बाणी में उपदेश दिया कि जो आपसी घृणा और नफरत पैदा करे उस रास्ते से दूर रहें और आपसी प्यार, मोहब्बत व एकजुटता बनाए रखें। कबीर साहब ने कहा संसार शांति व प्रेम के मार्ग से भटक रहा और इसे भूलता जा रहा है जोकि अशांति व दुख का कारण बनता जा रहा है। सच्चे दिल से धर्म व भगवान की भक्ति में लीन होने से सुख व शांति मिलती है। सारे संसार को विश्व की भलाई के बारे में सोचना चाहिए न कि किसी निजी स्वार्थ के लिए। कबीर साहब ने कहा कि भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए अपने आपको न्यौछावर करना और समर्पण जरूरी है।

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