पुराणों से जानें, जंगल की तरह है गृहिणीहीन घर

Edited By ,Updated: 16 Feb, 2017 01:13 PM

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कहते हैं कन्याओं के बिना घर का आंगन अधूरा होता है। महाभारत के अनुसार वह घर, घर नहीं जिसमें पत्नी नहीं। गृहिणीहीन घर जंगल की तरह है। पुराणों में वर्णित है कि स्त्रियां युद्ध भूमि में भी

कहते हैं कन्याओं के बिना घर का आंगन अधूरा होता है। महाभारत के अनुसार वह घर, घर नहीं जिसमें पत्नी नहीं। गृहिणीहीन घर जंगल की तरह है। पुराणों में वर्णित है कि स्त्रियां युद्ध भूमि में भी अपनी वीरता का परिचय देती थीं। त्रेतायुग में श्री राम के जन्म से पहले उनकी माता कैकेई पिता दशरथ के साथ न केवल युद्ध भूमि में जाती थीं बल्कि शौर्य का परिचय भी देती थीं। मां दुर्गा और मां काली ने ऐसे कई दैत्यों का संहार किया जिनका वध स्वयं देवता भी नहीं कर सकते थे। ऐसे कई उदाहरण हैं जो हमारे धर्म ग्रंथों में मौजूद हैं। यह सिद्ध करते हैं कि पौराणिक काल में स्त्रियां बाहुबल में पुरुषों की ही तरह श्रेष्ठ थीं। वैदिक काल की स्त्रियों को पूर्ण स्वतंत्रता थी। शिक्षा और स्वयंवर ही नहीं, विवाह के लिए अपने वर का चयन कन्या स्वयं ही करती थी। लड़कियां भी गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करती थीं। आश्रमों में ब्रह्मचर्य अनिवार्य था और सह-शिक्षा (को-एजुकेशन) का प्रचलन था।


वैदिक काल की विद्वान स्त्रियों में विश्ववरा, अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, मैत्रेयी और गार्गी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्हें ऋषि पद प्राप्त था। ऋग्वेद में (अगस्त्य मुनि के साथ) लोपामुद्रा 179 ऋचाओं की रचयिता हैं। चारों वेदों में नारी विषयक सैंकड़ों मंत्र हैं। ऋग्वेद में 24 और यजुर्वेद में 5 विदुषियों का उल्लेख है। इसी प्रकार ऋग्वेद में नारी विषयक 422 मंत्र हैं। यजुर्वेद के अनुसार वैदिक काल में कन्या का उपनयन संस्कार होता था। 

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